निबंध परीक्षा से घंटा पहले
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कितनी भी तैयारी कर रखी हो, पुस्तकों को घोट चाट डाला गया हो, लेकिन परीक्षा आते ही परीक्षार्थी के दिल की धड़कन बढ़ जाती है। ... ज्यों-ज्यों परीक्षा का दिन पास आता है, त्यों-त्यों मन में एक तरह का भय बढ़ता जाता है। परीक्षा के एक घंटे पहले परीक्षार्थी की मन:स्थिति तो कोई अनुभवी ही समझ सकता है। यही आप का उत्तर है।
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परीक्षा प्रारंभ होने से पहले ही विद्यार्थी परीक्षा-स्थान पर पहुँच जाते हैं और मित्रों की अलग-अलग टोलियाँ बन जाती हैं। कोई कहता है, “देखना, इस कविता का अर्थ जरूर पूछा जाएगा दूसरा उसकी बात काटते हुए कहता है, “इसे तो पहले ही पूछ लिया था। इस बार फिर पूछेगे?” इस प्रकार की चर्चाएँ कभी-कभी गरमागरम बहस का रूप धारण कर लेती हैं। प्रश्नपत्र की कल्पना में विद्यार्थी जमीन-आसमान एक कर देते हैं।पढ़ाई में कमजोर विद्यार्थियों को ऐसा लगता है, जैसे उन्हें कुछ भी याद नहीं है । महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तरों को बार-बार याद किया जाता है, फिर भी उनको संतोष नहीं होता। कोई कविता का अर्थ रटने बैठता है, तो कोई सारांश के पीछे पड़ता है। अधिकतर विद्यार्थी मार्गदर्शिकाएँ लेकर उन्हें तोते की तरह रटने बैठ जाते हैं । कुछ विद्यार्थी अध्यापक द्वारा लिखाए गए ‘नोट्स’ को रट लेने में ही बुद्धिमानी समझते हैं