निम्नलिखित अवतरण को पढ़े और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें :
... लगभग सभी नए सामाजिक आंदोलन नई समस्याओं जैसे- पर्यावरण का विनाश, महिलाओं की बदहाली, आदिवासी संस्कृति का नाश और मानवाधिकारों का उल्लंघन... के समाधान को रेखांकित करते हुए उभरे I इनमें से कोई भी अपने आप से समाज व्यवस्था के मूलगा मी बदलाव के सवाल से नहीं जुड़ा था I इस अर्थ में यह आंदोलन अतीत की क्रांतिकारी विचार धाराओं से एकदम अलग है I लेकिन, यह आंदोलन बड़ी बुरी तरह बिखरे हुए हैं और यही इनकी कमजोरी है…. सामाजिक आंदोलनों का एक बड़ा दायरा ऐसी चीजों की चपेट में है कि वह एक ठोस तथा एकजुट जन आंदोलन का रूप नहीं ले पाता और न ही वंचितों और गरीबों के लिए प्रासंगिक हो पाता है I यह आंदोलन बिखरे-बिखरे हैं, प्रतिक्रिया के तत्वों से भरे हैं, ‘ इस ‘ या ‘ उस ‘ के विरोध (पश्चिम- विरोध, पूंजीवाद विरोध, ‘ विकास ‘- विरोधी, आदि) में चलने के कारण इसमें कोई संगति आती हो अथवा दवे- कुचले लोगों और हाशिए के समुदायोंके लिए यह प्रासंगिक हो पाते हों-ऐसी बात नहीं I
(क) नए सामाजिक आंदोलन और क्रांतिकारी विचारधाराओं में क्या अंतर है?
(ख) लेखक के अनुसार सामाजिक आंदोलनों की सीमाएं क्या-क्या है?
(ग) यदि सामाजिक आंदोलन विशिष्ट मुद्दों को उठाते हैं तो आप उन्हें ‘ बिखरा ‘ हुआ कहेंगे या मानेंगे कि अपने मुद्दे पर वे कहीं ज्यादा केंद्रित हैं I अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क दीजिए I
Answers
सामाजिक आन्दोलन एक प्रकार का 'सामूहिक क्रिया' है। सामाजिक आन्दोलन व्यक्तियों और/या संगठनों के विशाल अनौपचारिक समूह होते हैं जिनका ध्येय किसी विशिष्ट सामाजिक मुद्दे पर केंद्रित होता है। दूसरे शब्दों में ये ये कोई सामाजिक परिवर्तन करना चाहते हैं, उसका विरोध करते हैं या किसी सामाजिक परिवर्तन को समाप्त कर पूर्वस्थिति में लाना चाहते हैं
आधुनिक पाश्चात्य जगत में सामाजिक आन्दोलन शिक्षा के प्रसार के द्वारा तथा उन्नीसवीं शदी में औद्योगीकरण व नगरीकरण के कारण श्रमिकों के आवागमन में वृद्धि के कारण सम्भव हुए।
आधुनिक आन्दोलन संसार भर में लोगों को जागृत करने के लिये प्रौद्योगिकी तथा अन्तरजाल का सहारा लेते हैं।
(क) क्रांतिकारी विचारधाराओं की तरह कोई भी नया सामाजिक आंदोलन स्वयं में और सामाजिक व्यवस्था के अनुरूप परिवर्तनकारी नहीं हैं, लेकिन वे नई समस्या के लिए सुधारात्मक रूप में अवश्य सामने आई हैं। (ख) लेखक के अनुसार ये आंदोलन किसी भी अधिक सुसंगत नहीं हैं, जो उत्पीड़ित और परिधीय समुदायों के लिए प्रासंगिक हैं। कुछ हद तक ये पार्टी की राजनीति से प्रभावित हैं। (ग) यदि सामाजिक आंदोलन अलग-अलग मुद्दों को संबोधित करते हैं, तो हम इनको विखरा हुआ कह सकते हैं जो सामाजिक परिवर्तन का कोई व्यापक ढांचा प्रदान नहीं करते हैं अर्थात् शराब बंदी, दलित पैंथर्स आदि।