निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए −
'धन्य-धन्य वे हैं नर मैले जो करत गात कनिया लगाय धूरि ऐसे लरिकान की' − लेखक इन पंक्तियों द्वारा क्या कहना चाहता है?
nimnalikhit kaa aashay spaṣṭ keejie −
'dhany-dhany ve hain nar maile jo karat gaat kaniyaa lagaay dhoori aise larikaan kee' − lekhak in pnktiyon dvaaraa kyaa kahanaa chaahataa hai?
रामविलास शर्मा
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Answer:
यहाँ लेखक इन पंक्तियों में बता रहे हैं की वह नर धन्य है और धन्यवाद के पात्र हैं जो धुल भरे शिशुओं को गोद में उठाकर गले से लगा लेते हैं । बच्चों के साथ उनका शरीर भी धूल से मैला हो जाता है। लेकिन वह नर धूल को मैल नहीं मानते।
इस पंक्ति में ‘ऐसे लरिकान’ से यह अर्थ निकलता है कि यह बच्चे जो गरीब है इसलिए धूल से लिपटे है। धूल को पवित्र और प्राकृतिक श्रृंगार का साधन मानते हैं। यह नर खुद को भाग्यशाली मानते है की हमें इन बच्चों को गोद में उठाने का अफसर मिला |
Answer:
इस पंक्ति का आशय यह है कि वे व्यक्ति धन्य हैं, जो धूल से सने बालकों को अपनी गोद में उठाते हैं और उन पर लगी धूल का स्पर्श करते हैं। बच्चों के साथ उनका शरीर भी धूल से सन जाता है। लेखक को 'मैले ' शब्द में हीनता का बोध होता है क्योंकि वह धूल को मैल नहीं मानते। 'ऐसे लरिकान' में भेदबुद्धी नज़र आती है। अत : इन पंक्तियों द्वारा लेखक धूल को पवित्र और प्राकृतिक श्रृंगार का साधन मानते हैं।
Explanation:
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