निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर संकेत बिंदुओं के आधार पर 80 - 100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए --
(क) पराधीन अपनेहुँ सुख नहीं --- पराधीनता एक अभिशाप
स्वतंत्रता की इच्छा
(ख) गुरु - शिष्य संबंध --- गुरु के बिना ज्ञान नहीं
प्राचीन काल के गुरु संबंध
(ग) मोबाईल फोन का युग --- मोबाईल फोन से आई क्रांति
फोन के विविध लाभ
आपके विचार
Answers
(ग) मोबाईल फोन का युग
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मोबाइल फोन , आज के दौर का सबसे
महत्वपूर्ण वस्तु । जिसके बिना हम
अपनी जिंदगी की कल्पना भी नहीं
कर सकते।आज के इस युग में ,
मानो मोबाइल फोन से क्रांति
हीआ गई है । आज हर एक मनुष्य,
इंसान के पास मोबाइल फोन है ।
चाहे वह गरीब हो या अमीर , चोर
हो या देशभक्त , कुम्हार हो या
नौकर । हर एक वर्ग के पास अभी
फोन है।
मोबाइल फोन एक ऐसी वस्तु है ,
जिसके कई लाभ है । हम एक
जगह बैठकर किसी अन्य इंसान से
बात कर सकते है और आजकल तो
इंसानों को देख भी सकते है ।
कोई चित्र ,संदेश , वीडियो भी भेज
सकते है ।यह तो कुछ भी नहीं ,
हम गाना भी सुन सकते है । हम
नौकरियां भी धुंड सकते है और
उसके लिए पंजीकृत भी कर सकते है ।
बैठे - बैठे हम खरीदारी भी कर सकते
है , वही घर बैठे - बैठे खाना भी
मंगवा सकते है ।
मेरे विचार से फोन का होना कोई
गलत बात नहीं है । हमें फोन को
जरूर प्रयोग में लाना चाहिए । परन्तु
एक सीमा तक । फोन के वजह से
ही हम , आलसी होते जा रहे है ।
साथ ही अभिभावकों के प्रति हमारा
व्यहवार भी खराब होते जा रहा है।
अतः फोन का हद से ज्यादा इस्तेमाल
करना एक लत सा है । इसलिए
हमें एक हद तक उसका इस्तेमाल
करना चाहिए ।
Answer:
गुरु-शिष्य परम्परा आध्यात्मिक प्रज्ञा का नई पीढ़ियों तक पहुंचाने का सोपान। भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परम्परा के अन्तर्गत गुरु (शिक्षक) अपने शिष्य को शिक्षा देता है या कोई विद्या सिखाता है। बाद में वही शिष्य गुरु के रूप में दूसरों को शिक्षा देता है। यही क्रम चलता जाता है। यह परम्परा सनातन धर्म की सभी धाराओं में मिलती है। गुरु-शिष्य की यह परम्परा ज्ञान के किसी भी क्षेत्र में हो सकती है, जैसे- अध्यात्म, संगीत, कला, वेदाध्ययन, वास्तु आदि। भारतीय संस्कृति में गुरु का बहुत महत्व है। कहीं गुरु को 'ब्रह्मा-विष्णु-महेश' कहा गया है तो कहीं 'गोविन्द'। 'सिख' शब्द संस्कृत के 'शिष्य' से व्युत्पन्न है।
राजा रवि वर्मा द्वारा 1904 में बनाया हुआ - शिष्यों के साथ आदि शंकराचार्य
'गु' शब्द का अर्थ है अंधकार (अज्ञान) और 'रु' शब्द का अर्थ है प्रकाश ज्ञान। अज्ञान को नष्ट करने वाला जो ब्रह्म रूप प्रकाश है, वह गुरु है। आश्रमों में गुरु-शिष्य परम्परा का निर्वाह होता रहा है। भारतीय संस्कृति में गुरु को अत्यधिक सम्मानित स्थान प्राप्त है। भारतीय इतिहास में गुरु की भूमिका समाज को सुधार की ओर ले जाने वाले मार्गदर्शक के रूप में होने के साथ क्रान्ति को दिशा दिखाने वाली भी रही है। भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर माना गया है.
“गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर: ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः”
प्राचीन काल में गुरु और शिष्य के संबंधों का आधार था गुरु का ज्ञान, मौलिकता और नैतिक बल, उनका शिष्यों के प्रति स्नेह भाव, तथा ज्ञान बांटने का निःस्वार्थ भाव. शिक्षक में होती थी, गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा, गुरु की क्षमता में पूर्ण विश्वास तथा गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण एवं आज्ञाकारिता. अनुशासन शिष्य का सबसे महत्वपूर्ण गुण माना गया है.
आचार्य चाणक्य ने एक आदर्श विद्यार्थी के गुण एस प्रकार बताये हैं-
“काकचेष्टा बको ध्यानं श्वाननिद्रा तथैव च ।
अल्पहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पञ्चलक्षणम् ”।।
गुरु और शिष्य के बीच केवल शाब्दिक ज्ञान का ही आदान प्रदान नहीं होता था बल्कि गुरु अपने शिष्य के संरक्षक के रूप में भी कार्य करता था। उसका उद्द्येश्य रहता था कि गुरु उसका कभी अहित सोच भी नहीं सकते. यही विश्वास गुरु के प्रति उसकी अगाध श्रद्धा और समर्पण का कारण रहा है।
गीता में भगवान श्रीकृष्ण जी ने गुरु-शिष्य परम्परा को ‘परम्पराप्राप्तम योग’ बताया है। गुरु-शिष्य परम्परा का आधार सांसारिक ज्ञान से शुरू होता है,परन्तु इसका चरमोत्कर्ष आध्यात्मिक शाश्वत आनंद की प्राप्ति है,जिसे ईश्वर -प्राप्ति व मोक्ष प्राप्ति भी कहा जाता है। बड़े भाग्य से प्राप्त मानव जीवन का यही अंतिम व सर्वोच्च लक्ष्य होना चाहिए। ” गुरु एक मशाल है, शिष्य प्रकाश