निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर दीजिए −
ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते?
nimnalikhit prashn kaa uttar deejie −
iishvar kaṇa-kaṇa men vyaapt hai, par ham use kyon naheen dekh paate?
साखी
Answers
Answer:
Hey mate here is your answer
Explanation:
हमारा मन अज्ञानता, अहंकार, विलासिताओं में डूबा है। ईश्वर सब ओर व्याप्त है। वह निराकार है। हम मन के अज्ञान के कारण ईश्वर को पहचान नहीं पाते। कबीर के मतानुसार कण-कण में छिपे परमात्मा को पाने के लिए ज्ञान का होना अत्यंत आवश्यक है। अज्ञानता के कारण जिस प्रकार मृग अपने नाभि में स्थित कस्तूरी पूरे जंगल में ढूँढता हैं, उसी प्रकार हम अपने मन में छिपे ईश्वर को मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा सब जगह ढूँढने की कोशिश करते हैं।
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Plz mark me brainiest.
Answer:
ईश्वर हर कण कण में है,क्योकि समस्त सृष्टि वही चला रहे है। लोगो का मन साफ नहीं है इसलिए हम उनको देख नहीं सकते।
Explanation:
मारा मन अज्ञानता, अहंकार, विलासिताओं, पाप में डूबा है। ईश्वर तो सब जगह है, जहाँ देखो वह व्याप्त है। वह निराकार है। उनका कोई स्वरुप नहीं है। हम मन की अज्ञानता के करणवश ईश्वर को पहचान नहीं पाते। क्योकि हम इतने अज्ञानी पापी हो चेके है, की चाह कर भी हम ईश्वर को नहीं देख सकते। कण-कण में छिपे परमात्मा को पाने के लिए ज्ञान का होना अत्यंत आवश्यक है। अज्ञानता के कारण जिस प्रकार मृग अपने नाभि में स्थित कस्तूरी पूरे जंगल में ढूँढता हैं, उसी प्रकार हम अपने मन में छिपे ईश्वर को मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा सब जगह ढूँढने की कोशिश करते रहते हैं। ईश्वर हर फूल में, पशु-पक्षी में, मनुष्य में, नदियाँ, पहाड़, धरती , आसमान सब जगह है। बस मन निर्मल कर लो उन्हें हम पा सकते हैं।