Hindi, asked by ashkan1900, 11 months ago

निम्नलिखित पद्रयाशों में से किसी एक ही संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए तथा काव्य सौंदर्य भी लिखें लिखिए
उधौ मन न भए दस बीस
एक हुतो सो गयो श्याम संग, कौ अवराधै ईस
इन्दी सिथिल भई केसव बिनु, ज्यों देही बिनु सीस ।
आसा लागि रहति तन स्वामा, जीवहीं कोटि बरिम ।
तुम तो सखा स्यामा सुन्दर के, सकल जंग के ईस ।
सूर हमारे नंद नंदन बिनु, और नहीं जगदीस । ।

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Answered by Anonymous
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Answer:

'ऊधो मन न भये दस बीस' का क्या अर्थ है?

"उधो, मन न भए दस बीस" महाकवि सूरदास की लिखी हुई काव्य रचना है, जिसकी पूरी पंक्तियाें का सार इस प्रकार है।

उधो, मन न भए दस बीस।

एक हुतो सो गयौ स्याम संग, को अवराधै ईस॥

सिथिल भईं सबहीं माधौ बिनु जथा देह बिनु सीस।

स्वासा अटकि रही आसा लगि, जीवहिं कोट बरीस॥

तुम तौ सखा स्यामसुन्दर के, सकल जोग के ईस।

सूरदास, रसिकन की बतियां पुरवौ मन जगदीस॥

इन पंक्तियों में लिखी हुई शब्दों के अर्थ का पहले वर्णन करती हूँ।

हुतो =था।

अवराधै = आराधना करे, उपासना करे।

ईस =निर्गुण ईश्वर।

सिथिल भईं = निष्प्राण सी हो गई हैं।

स्वासा = श्वास, प्राण।

बरीस= वर्ष का अपभ्रंश।

पुरवौ मन = मन की इच्छा पूरी हो।

इन पंक्तियों में निहित अर्थ का स्रोत -

सूरदास के द्वारा लिखी गयी पंक्तियों के भावार्थ के बारे में यह कहा गया है, कि यह पंक्तियाँ गोपियों और उनके ईष्ट देव श्री कृष्ण से संबंधित है।

यह स्थिति उस समय की है जब कृष्ण जी गोकुल से मथुरा चले जाते है। मथुरा से वे अपने सखा उद्धव को गोकुल भेजते है और उद्धव गोपियों को योग का पाठ समझाते हैं।

परन्तु गोपियों का मन योग में नहीं लगता है।

उनका कहना है, कि उनके पास तो एक ही मन था, जो कृष्ण जी में लगा रहता था और श्री कृष्ण जी के मथुरा जाने के बाद उन्हीं के साथ चला गया।

फिर अब हम गोपियाँ उद्धव जी के योग ज्ञान में कहाँ से मन लगायें ?

गोपियाँ उद्धव से कहती है, कि हे उद्धव जी; हमारे पास तो एक ही मन था, जो श्री कृष्ण जी अपने साथ मथुरा जाते समय लेते गए।

हमारी दशा तो इस समय कुछ ऐसी हो गयी है, जैसे सिर के बिना कोई शरीर हो !

हमारी सासें इस आशा में हमारे शरीर का साथ नहीं छोड़ रहीं हैं कि एक न एक दिन श्री कृष्ण जी गोकुल जरूर आयेंगें और हमें अपना दर्शन देंगे।

गोपियाँ उद्धव से कहती हैं, कि हे उद्धव जी आप तो श्रीकृष्ण जी के परम मित्र हो, आप तो योग के पूर्ण ज्ञानी हो; फिर आप को हम क्या समझाएं ?

फिर सूरदास जी श्री कृष्ण से कहते हैं, 'हे स्वामी जी, हे श्री कृष्ण जी आप इन गोपियों के मन की बात पूरी कर दीजिए और उन्हें अपना दर्शन दे दीजिए।

सूरदास जी की लिखी गयी काव्य का यही सार है।

जानकारी स्रोत -

उत्तर के अनुरोध के लिए धन्यवाद

Answered by rawatmukeshrawat870
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Explanation:

1. निम्नलिखित पद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिये ऊधौ ! मन नाहीं दस बीस । एक हुतौ सो गयो स्याम संग , सो आराधै ईस । भई अति सिथिल सबै माधव बिनु जथा देह बिन सीस । स्वासा अटकि रहै आसा लग्गि , जीवहिं कोटि बरीस । तुम तौं सखा स्याम सुन्दर के , सकल जोग के ईस । सूरदास सुन रस की बतियाँ पुरबौ मन जगदीस ।

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