Hindi, asked by snehachichghare1791, 8 months ago

निम्नलिखित पद्यांश की सन्दर्भ सहित हिन्दी में व्याख्या कीजिए और उसका काव्यगत-सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए—
सुनि सुन्दर बैन सुधारस-साने, सयानी हैं जानकी जानी भली ।
तिरछे करि नैन दै सैन तिन्हें, समुझाइ कछू मुसकाइ चली ।।
तुलसी तेहि औसर सोहै सबै, अवलोकति लोचन-लाहु अली ।
अनुराग-तड़ाग में भानु उदै, बिगसीं मनो मंजुल कंज-कली ।।

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Answered by bhatiamona
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प्रसंग: प्रस्तुत  पंक्तियों में ग्रामवधुओं के प्रश्न का उत्तर देती हुई सीता जी अपने हाव-भावों से ही राम के विषय में सब कुछ बता देती है|

व्याख्या : ग्रामवधुओं ने राम के विषय में सीता जी से पूछा की यह सांवले और सुन्दर रूप वाले तुम्हारे कटा लगते है| ग्रामवधुओं के अमृत जैसे मधुर वचनों को सुनकर चतुर सीता जी उनके मनोभाव को समझ गई| सीता जी उनके प्रश्न का उत्तर अपनी मुस्कुराहट तथा संकेत भरी दृष्टि से ही दिया , उन्हें मुख से कुछ बोलने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी | उन्होंने लज्जा के कारण केवल संकेत से ही राम के विषय में यह समझा दिया की वह उनके पति है| तुलसी जी कहते है , की सीता जी के संकेत को समझकर सभी सखियाँ राम के सौंदर्य  को एकटक देखती हुई अपने नेत्रों का लाभ प्राप्त करने लगी |

काव्यगत-सौन्दर्य

सीता जी का संकेतपूर्ण उत्तर भारतीय नारी की मर्यादा तथा लब्ध ,नेत्र , निवार्ण की भावना के अनुरूप है |

प्रस्तुत पद में नाटकीयता और काव्य का सुन्दर योग है|

भाषा – सुललित बज्र |

शैली -चित्रात्मक व मुक्तक |

छंद -सवैया  

रस – श्रृंगार  

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निम्नलिखित संस्कृत-गद्यांस का संदर्भ सहित हीन्दी में अनुवाद कीजिए—

अस्माकं संस्कृतिः सदा गतिशीला वर्तते । मानवजीवनं संस्कर्तुम् एषा यथासमयं नवां नवां विचारधारां स्वीकरोति, नवां शक्तिं च प्राप्नोति । अत्र दुराग्रहः नास्ति, यत् युक्तियुक्तं कल्याणकारि च तदत्र सहर्षं गृहीतं भवति । एतस्याः गतिशीलतायाः रहस्यं मानवजीवनस्य शाश्वतमूल्येषु निहितम्, तद् यथा सत्यस्य प्रतिष्ठा, सर्वभूतेषु समभावः विचारेषु औदार्यम्, आचारे दृढ़ता चेति ।

Answered by ranibegum1153
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Answer:

प्रसंग-इन पंक्तियों में ग्रामवधुओं के प्रश्न का उत्तर देती हुई सीताजी अपने हाव-भावों से ही राम के विषय में सब कुछ बता देती हैं।

व्याख्या ग्रामवधुओं ने राम के विषय में सीताजी से पूछा कि ये साँवले और सुन्दर रूप वाले तुम्हारे क्या लगते हैं?’ ग्रामवधुओं के अमृत जैसे मधुर वचनों को सुनकर चतुर सीताजी उनके मनोभाव को समझ गयीं। सीताजी ने उनके प्रश्न का उत्तर अपनी मुस्कराहट तथा संकेत भरी दृष्टि से ही दे दिया, उन्हें मुख से कुछ बोलने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। उन्होंने स्त्रियोचित लज्जा के कारण केवल संकेत से ही राम के विषय में यह समझा दिया कि ये मेरे पति हैं। तुलसीदास जी कहते हैं कि सीताजी के संकेत को समझकर सभी सखियाँ राम के सौन्दर्य को एकटक देखती हुई अपने नेत्रों का लाभ प्राप्त करने लगीं। उस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो प्रेम के सरोवर में रामरूपी सूर्य का उदय हो गया हो और ग्रामवधुओं के नेत्ररूपी कमल की सुन्दर कलियाँ खिल गयी हों। काव्यगत सौन्दर्य ⦁ सीता जी का संकेतपूर्ण उत्तर भारतीय नारी की मर्यादा तथा ‘लब्धः नेत्र . निर्वाण:’ की भावना के अनुरूप है। ⦁ प्रस्तुत पद में ‘नाटकीयता और काव्य’ का सुन्दर योग है। ⦁ भाषा-सुललित ब्रज। ⦁ शैली—चित्रात्मक व मुक्तक। ⦁ छन्द-सवैया। ⦁ रस-श्रृंगार। ⦁ अलंकार–‘सुनि सुन्दर बैन सुधारस साने, सयानी हैं जानकी जानी भली में अनुप्रास, ‘अनुराग-तड़ाग में भानु उदै बिगसीं मनो मंजुल कंज कली’ में रूपक, उत्प्रेक्षा और अनुप्रास की छटा है। ⦁ गुणमाधुर्य। ⦁ शब्दशक्ति–व्यंजना।

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