निम्नलिखित संस्कृत-गद्यांस का संदर्भ सहित हीन्दी में अनुवाद कीजिए—
एषा कर्मवीराणां संस्कृतिः "कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः" इति अस्याः उद्घोषः । पूर्व कर्म, तदनन्तरं फलम् इति अस्माकं संस्कृते नियमः । इदानीं यदा वयं राष्ट्रस्य नवनिर्माणे संलग्नाः स्म निरन्तरं कर्मकरणम् अस्माकं मुख्यं कर्त्तव्यम् । निजस्य श्रमस्य फलं भोग्यं, अन्यस्य श्रमस्य शोषणं सर्वथा वर्जनीयम् । यदि वयं विपरीतम् आचरामः तदा न वयं सत्यं भारतीय-संस्कृतेः उपासकाः । वयं तदैव यथार्थ भारतीया यदास्माकम् आचारे विचारे च अस्माकं संस्कृतिः लक्षिता भवेत् । अभिलषामः वयं यत् विश्वस्य अभ्युदयाय भारतीयसंस्कृतेः एषः दिव्यः सन्देशः लोके सर्वत्र प्रसरेत् ।
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बिना कर्म किये प्राणी बिना आत्मा के शरीर के समान होता है।
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संदर्भ : निम्नलिखित संस्कृत-गद्यांस "संस्कृत खण्ड" पुस्तक के "भारतीय संस्कृति" अध्याय से लिया गया है।
अनुवाद : यह कर्मवीरो की भूमि है " बिना कर्म किये प्राणी बिना आत्मा के शरीर के समान होता है।" यह इसका नारा है। पहले कर्म और उसके पश्चात फल यह हमारी संस्कृति का नियम है। इस समय जब हम राष्ट्र के निर्माण में संलग्न हैं तब निरंतर कर्म करना हमारा मुख्या कर्त्तव्य है। स्वयं के कर्म का फल भोगना चाइये और दुसरो के कर्म का शोषण करना हमेशा वर्जित है। अगर हम संस्कृति के विपरीत व्यव्हार (आचरण) करते हैं तो हम भारतीय संस्कृति के सच्चे उपासक नहीं हैं।
हम उसी तरह सच्चे भारतीय होंगे जब हम अपने आचार-विचार और हमारी संस्कृति को अपनाते हैं। यही हमारी अभिलाषा है की संपूर्ण विश्व में भारतीय संस्कृति का ऐसा दिव्या सन्देश लोगो तक पहुंचे।
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