निम्नलिखित संस्कृत-पद्यांश/श्लोक का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए—
नितरां नीचोSस्मीति त्वं खेदं कूप ! कदापि मा कृथाः ।
अत्यन्तसरसह्रदयो यतः परेषां गुणग्रहीतासि ।।
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निम्नलिखित संस्कृत-पद्यांश/श्लोक का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद
नितरां नीचोSस्मीति त्वं खेदं कूप ! कदापि मा कृथाः ।
अत्यन्तसरसह्रदयो यतः परेषां गुणग्रहीतासि ।।
संदर्भ- प्रतुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक हिन्दी के संस्कृत-खण्ड के अन्योक्तिविलासः पाठ से उधृत है |
प्रसंग – इस श्लोक में कुएँ के माध्यम से सज्जनों को यह संदेश दिया गया है की उन्हें अपने आपको तुच्छ नहीं समझना चाहिए|
अनुवाद: हे कुएँ मैं अत्यंत गहरा है | इस प्रकार कभी भी दुःख मत करो , क्योंकि तुम अत्यंत सरस हृदय वाले जलयुक्त और दूसरों के गुणों को ग्रहण करने वाले हो|
भाव- हे गम्भीर पुरुष | मैं अत्यंत तुच्छ हूँ ऐसा समझकर तुम मन में खेद मत करो , क्योंकि तुम सरस हृदय वाले और दूसरों को गुणों को ग्रहण करने वाले ही | भाव यह है की व्यक्ति कितना ही छोटा क्यों न हो यदि वह सरस हृदय और दूसरों कर गुणों को ग्रहण करने वाला है तो वह किसी से भी कम नहीं होता है |
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निम्नलिखित संस्कृत-पद्यांश/श्लोक का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए—
किंस्विद् गुरुतरं भूमेः किंस्विदुच्चतरं च खात् ?
किंस्विद् शी्घ्रतरं वातात् किंस्विद् बहुतरं तृणात् ?
माता गुरुतरा भमेः खात् पितोच्चतरस्तथा ।
मनः शीघ्रतरं वातात् चिन्ता बहुतरी तृणात् ।।
Answer:
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