Nayi kaksha me Pratham Diwas ka Anubhav batate Hue Apne choti behan ko Patra likhiye
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1
/251 नेहरू नगर
दिल्ली ।
20 सितम्बर, 2015
आदरणीय रतन प्रकाश जी,
सादर अभिनन्दन ।
कल ही मुझे एक सज्जन के माध्यम से आपके द्वारा भेजा गया बैग प्राप्त हुआ । मेरे पास तो जैसे आपका आभार प्रकट करने के लिए शब्द ही नहीं है । जब से मेरा बैग खोया था, तब से मैं बहुत परेशान चल रहा था क्योंकि बैग में मेरे जरूरी कागजात थे तथा कुछ जरूरी चाबियाँ भी थी ।
यदि शीघ्र ही आपके द्वारा मेरा बैग न मिलता, तो कितने ही आवश्यक कार्यों में विलम्ब हो जाता । आपकी कृपा से ही मैं परेशानियों से बच गया । आपको पुन: कोटि-कोटि धन्यवाद । वैसे बैग खो जाने में मेरी ही गलती थी ।
बात यह हुई कि कल जब बस अड्डे पर मैं बस की प्रतीक्षा कर रहा था तो मैं जिस बैच पर बैठा था, वह बैग वहीं पर छूट गया और मैं जल्दी-जल्दी बस में चढ़ गया । घर जाकर मुझे उस बैग का ध्यान आया, तो मेरे जैसे होश ही उड़ गए ।
फिर मैं उसे सब जगह ढूँढने भी गया, परन्तु वह कहीं भी नहीं मिला । दो दिन मैंने बहुत परेशानी में गुजारे और आज जब मैं इसी उधेडबुन में इधर-उधर टहल रहा था, तभी अचानक आपके द्वारा भेजे सज्जन देवदूत की भाँति प्रकट हुए और जैसे ही उन्होंने मुझे वह बैग थमाया तो मैं खुशी से जैसे पागल सा हो गया ।
वे सज्जन तो रुके भी नहीं और मुझे धन्यवाद देने का भी अवसर नहीं मिला । अब इस पत्र के माध्यम से मैं आपका तथा उन सज्जन का दिल से धन्यवाद करना चाहता हूँ तथा कष्ट के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ ।
भवदीय,
राकेश रस्तोगी
श्री रतन प्रकाश जी
92/गाँधी नगर, दिल्ली
दिल्ली ।
20 सितम्बर, 2015
आदरणीय रतन प्रकाश जी,
सादर अभिनन्दन ।
कल ही मुझे एक सज्जन के माध्यम से आपके द्वारा भेजा गया बैग प्राप्त हुआ । मेरे पास तो जैसे आपका आभार प्रकट करने के लिए शब्द ही नहीं है । जब से मेरा बैग खोया था, तब से मैं बहुत परेशान चल रहा था क्योंकि बैग में मेरे जरूरी कागजात थे तथा कुछ जरूरी चाबियाँ भी थी ।
यदि शीघ्र ही आपके द्वारा मेरा बैग न मिलता, तो कितने ही आवश्यक कार्यों में विलम्ब हो जाता । आपकी कृपा से ही मैं परेशानियों से बच गया । आपको पुन: कोटि-कोटि धन्यवाद । वैसे बैग खो जाने में मेरी ही गलती थी ।
बात यह हुई कि कल जब बस अड्डे पर मैं बस की प्रतीक्षा कर रहा था तो मैं जिस बैच पर बैठा था, वह बैग वहीं पर छूट गया और मैं जल्दी-जल्दी बस में चढ़ गया । घर जाकर मुझे उस बैग का ध्यान आया, तो मेरे जैसे होश ही उड़ गए ।
फिर मैं उसे सब जगह ढूँढने भी गया, परन्तु वह कहीं भी नहीं मिला । दो दिन मैंने बहुत परेशानी में गुजारे और आज जब मैं इसी उधेडबुन में इधर-उधर टहल रहा था, तभी अचानक आपके द्वारा भेजे सज्जन देवदूत की भाँति प्रकट हुए और जैसे ही उन्होंने मुझे वह बैग थमाया तो मैं खुशी से जैसे पागल सा हो गया ।
वे सज्जन तो रुके भी नहीं और मुझे धन्यवाद देने का भी अवसर नहीं मिला । अब इस पत्र के माध्यम से मैं आपका तथा उन सज्जन का दिल से धन्यवाद करना चाहता हूँ तथा कष्ट के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ ।
भवदीय,
राकेश रस्तोगी
श्री रतन प्रकाश जी
92/गाँधी नगर, दिल्ली
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