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महानगरीय जीवन
1.विकास की अंधी दौड़
2.संबंधों का ह्रास
3.दिखावा
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महानगरीय जीवन
महानगरीय जीवन का नाम लेते ही ऊँची-ऊँची इमारतों, बड़े-बड़े कल-कारखानों, दुकानों तथा दौड़ते वाहनों शोर से है। महानगरों में सब कुछ आसानी से मिल जाता है।
देखा भी जाए तो महानगरीय जीवन अनेक रूपों में मनुष्य के लिए किसी वरदान पर साथ में अभिशाप भी है।
1.विकास की अंधी दौड़
सब विकास की अंधी दौड़ से प्रकृति बढ़ रही विनाश की ओर बढ़ रही है. बड़े-बड़े शहरों में जेनरेटर धुंआ उगल रहे हैं, वाहनों से निकलने वाली गैस, कारखानों और गृह की चिमनियों तथा स्वचालित मोटरगाड़ियों में विभिन्न ईंधनों के पूर्ण और अपूर्ण दहन भी प्रदूषण को बढ़ावा दे रहे हैं और पर्यावरण की सेहत को नुक्सान पहुंचा रहे हैं। जहरीली गैसों- के कारण वायु प्रदूषण हो रहा है.
2.संबंधों का ह्रास
महानगरों का जीवन भाग -दौड़ ,हर कोई अपने आप मे व्यस्त है, यहाँ लोग कमाने के बारे में सोचते है पैसा, विकास, बिज़नस, सब इसके पीछे भागे है. यहाँ पे किसी के पास समय नहीं किसी के लिए. रिश्ते-नाते तो बस दिखावे के लिए रह गए है. बच्चे अपनी जिन्दगी में व्यस्त है और माँ-बाप भी अपने में व्यस्त है.
3.दिखावा
महानगरों में लोग बनावटी हो गए है, सब दिखावा करते है बात करने का, कपड़ों का, रिश्तों का असल में किसी के पास समय ही नहीं है. अब मैट्रो के किसी लेडीज़ डिब्बे का नजारा देख लीजिए . आपको तमाम लेटेस्ट फैशन के कपड़े, बैग, चप्पल, गहने दिख जाएँगे. यहाँ पे कोई किसी की मदद नहीं करता.