Hindi, asked by saurabbunkar894, 4 months ago

oryन्निलिखित में से किसी एक गद्याश की सदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या
अरह का के दोनों बैलों के नाम हीरा और मोती। दोनों पधाईकेधेदे
में चोकर डील में ऊंचे बहुत दिनों साथ रहते-रहते दोनों में भाईचारा हो गया
सामने बैठे हुए एक दूसरे से मूल भाषा में विचार विनिमय करते थे
जाने हम नहीं कह सकते। अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुण शक्ति थी जिस
का दावा करने वाला मनुष्य वाचत है। दोनों एक-दूसरे को चाटकर-संधकर अप
कभी-कभी दोनो सींग भी मिला लेते. विग्रह के नाते से नही केवल विनोद
साब से जैसे दोस्ती में घनिष्ठता होने ही धौल-अप्पा होने लगना है। इसके बि
मुसफुसी, कुछ हल्की-सी रहती है, जिस पर ज्यादा विश्वास नहीं किया जा​

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Answered by Anonymous
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Explanation:

मियाँ नसीरूद्दीन ने आँखों के कंचे हम पर फेंक दिए। फिर तररेकर बोल- 'क्या मतलब है?

पूछिए साहब- नानबाई इल्म लेने कहीं और जाएगा? क्या नगीनासाज के पास? क्या आईनास के

पास? क्या मीना साज के पास? या रफूगर, रंगरेज या तेली-तंबोली से सीखने जाएगा? क्यामुझे बहुत कुछ करना है क्या तुम मेरी मदद करोगें। (? | !-)

निम्नलिखित शब्दों का उपयोग करते हुए एक कहानी लिखिए।

काकी, हलवा, व्यंजन, बूढ़ी, कचौरी, मेहमान, गाँव, शादी।

'पानी के महत्त्व' अथवा ' त्यौहारों का महत्व शीर्षक पर अनुच्छेदव मनुष्य पर कैसा पड़ता है तो उन्होंने बताया ही अपने कमरे पर अपना कार्य करता ही रहता ही राजीव यादव को अच्छी शिक्षा दी जाएगी इसलिए इसे एक मरीज़ हैं।मनुष्य ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट कृति है। शुभ तथा अशुभ संस्कारों की प्राप्ति हमें अपने जन्म से पहले ही माता के गर्भधारण करने के समय से प्रारंभ हो जाती है। जन्म लेने पर बच्चा ज्यों-ज्यों बड़ा होता जाता है, त्यों-त्यों उस पर उसके माता-पिता परिवार के अन्य सदस्यों, अड़ोस-पड़ोस के वातावरण, अपने मित्रों, पुस्तकों के ज्ञान आदि का प्रभाव पड़ता है। जीवन के व्यवहार में उसे जिस किसी से काम पड़ता है वह उसके गुण-दोषों से अछूता नहीं रहता। इस प्रकार जीवन के कई पड़ावों पर ये प्रभाव उसके संस्कार बनते जाते हैं। स्वभाव से ही मनुष्य ऊँचा उठना और आगे बढ़ना चाहता है। यही मनुष्य और पशु में अंतर है। पशु जहाँ के तहाँ पड़े हैं। मनुष्य अपने संस्कारों की पहचान कर विकास-मार्ग पर अग्रसर हो रहा है।

हमारे शुभ और उच्च संस्कार ही हमारी मानवता की पहचान हैं। यद्यपि हमारे शुभ संकल्प पूर्वजन्मों के कर्मों तथा इस जन्म की अच्छी संगति से जुड़े हुए हैं, फिर भी उन्हें पाने के लिए हमें अपना जीवन, स्वार्थ-त्यागकर नि:स्वार्थ भाव से बिताना होगा। आलस्य, प्रमाद छोड़ हमें परिश्रमी बनना होगा।

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