पांचवीं एवं छठी शताब्दी ईसवी में उत्तर भारत मूर्तिकला की शैलीगत प्रवृत्तियों-का विश्लेषण करें।
Answers
पांचवीं एवं छठी शताब्दी ईसवी में उत्तर भारत मूर्तिकला में उनके वस्त्रों को आकार में ही शामिल कर दिया गया है| बुद्धकी प्रतिमाओं में वस्त्रों की पारदर्शता स्पष्टता दृष्टिगोचर होती है| इस अवधि में ऊतर भारत में मूर्तिकला के दो महत्वपूर्ण स्मप्र्दाओं का उदय हुआ जिनका उल्लेख करना जरूरी है|
मूर्तिकला का परम्परागत केंद्र मथुरा तो कला के उत्पादन का मुख्य केंद्र बना ही रहा उसके साथ ही सारनाथ और कोशाम्भी भी कला के उत्पादन के महत्वपूर्ण केंद्रों के रूप में उभर कर आए| सारनाथ में पाई जाने वाली बोध प्रतिमाओं में दोनों कंधो को वस्त्रों से ढका हुआ दिखाया गया है , सर के चरों और आभामंडल बना हुआ है |
जिस में सजावट बहुत काम है जब की मथुरा में बुद्ध की मूर्तियों के ओढ़ने के वस्त्रों की कई तहें दिखाई गई है , और सिर के चारों और के आभामंडल को अत्यधिक सजाया गया है|
≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡
भारतीय कला का परिचय
पाठ-4 भारतीय कला और स्थापत्य में मौर्योत्तर कालीन प्रवृत्तियां
इस पाठ से संबंधित अन्य प्रश्नों के लिये नीचे दिये गये लिंकों पर जायें....
https://brainly.in/question/16398139
सांची के सतूप संख्या 1 की भौतिक एवं सौंदर्य विशिष्टताओं को वर्णन करें।