पंडित रामचंद्र शुक्ल का हिंदी साहित्य के प्रति झुकाव किस तरह बढ़ता गया
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लेखक के पिता फ़ारसी के ज्ञाता थे तथा हिंदी प्रेमी भी थे। ... इस तरह हिंदी साहित्य की ओर झुकाव होना स्वाभाविक था
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लेखक के पिता फारसी भाषा के अच्छे विद्वान थे और वे प्राचीन हिन्दी भाषा के प्रशंसक थे। वे फारसी भाषा में लिखी उक्तियों के साथ हिन्दी भाषा में लिखी गई उक्तियों को मिलाने के शौकीन थे।वे प्रायः रात में सारे परिवार को रामचरितमानस तथा रामचंद्रिका का बड़ा चित्रात्मक ढ़ंग से वर्णन करके सुनाते थे।भारतेंदु के नाटक उन्हें बहुत प्रिय थे।.........इस तरह हिंदी साहित्य की ओर झुकाव होना स्वाभाविक था। आगे चलकर पंडित केदारनाथ जी ने इसमें मील के पत्थर का कार्य किया। लेखक जिस पुस्तकालय में हिंदी की पुस्तकें पढ़ने जाया करते थे, उसी के संस्थापक केदारनाथ जी थे।
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