प
"काब
यह
ही सघन बकुल वृक्ष दिखाई देते थे।
बच्च
क्योंकि
फरवरी १९३६ में मुझे शांति निकेतन जाना था।
के सघन उपवन के बीचोबीच बनाया गया था। बहुत ही
वहाँ एक साहित्यिक कार्यक्रम होने वाला था। मैं बहुत सुदर, बड़ी और अच्छी इमारत थी वह ! जैसा सोचा था
ही है।
ही उल्लसित था क्योंकि उस कार्यक्रम की अध्यक्षता
वैसा ही पाया। ऊपर की मंजिल के एक कमरे में हमें
स्वयं गुरुदेव रवींद्रनाथ जी करने वाले थे।
मेरे मैं
ठहराया गया । कमरे के बाहर एक विस्तृत बरामदा था।
निश्चित दिन कोलकाता से हम बहुत सारे लोग
बरामदे में खड़े होकर अगर बाहर देखा जाए तो सामने
शांति निकेतन के लिए रवाना हुए । लगभग एक दर्जन
हिंदीवालों का यह दल शांति निकेतन के सुंदर अतिथि-
दूसरे दिन प्रात:काल ही हमें बताया गया कि
भवन में
ठहराया गया । यह अतिथि भवन अशोक वृक्षों गुरुदेव का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, अत: कार्यक्रम की
बैठक में वे नहीं आ पाएंगे । मै बहुत निराश हो गया
तथापि हमें जब यह मालूम पड़ा कि उनके डॉक्टर ने हम
शांति निकेतन
लोगों को केवल पंद्रह मिनटों का समय दिया है, जिसमें
गुरुदेव के दर्शन तथा उनके साथ संक्षिप्त वार्तालाप भी
हो सकता है तब हमारी खुशी का ठिकाना न रहा। हम
बेसब्री से उस क्षण का इंतजार करने लगे।
मध्याह्न के बाद गुरुदेव की भेंट हुई । करीब चार
बजे होंगे । गुरुदेव की धारणा थी कि कुछ दो-तीन
आदमी ही होंगे । पर जब उन्होंने हम चौदह जनों को
nagguaglam
explain it in short
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