Social Sciences, asked by khansadab13827, 6 months ago

प्र.20 नई आर्थिक नीति की
आर्थिक सुधारों की प्र
प्र.21 ऊर्जा के प्रमुख स्रोतों
ऊर्जा संकट के कारण
प्र.22​

Answers

Answered by jassjathol
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Answer:

ऐति‍हासि‍क रूप से भारत एक बहुत वि‍कसि‍त आर्थिक व्‍यवस्‍था थी जि‍सके वि‍श्‍व के अन्‍य भागों के साथ मजबूत व्‍यापारि‍क संबंध थे। औपनि‍वेशि‍क युग ( 1773–1947 ) के दौरान अंग्रेज भारत से सस्‍ती दरों पर कच्‍ची सामग्री खरीदा करते थे और तैयार माल भारतीय बाजारों में सामान्‍य मूल्‍य से कहीं अधि‍क उच्‍चतर कीमत पर बेचा जाता था जि‍सके परि‍णामस्‍वरूप स्रोतों का द्विमार्गी ह्रास bahut jyada होता था। इस अवधि‍ के दौरान वि‍श्‍व की आय में भारत का हि‍स्‍सा 1700 ईस्वी के 22.3 प्रतिशत से गि‍रकर 1952 में 3.8 प्रति‍शत रह गया। 1947 में भारत के स्‍वतंत्रता प्राप्‍ति‍ के पश्‍चात अर्थव्‍यवस्‍था की पुननि‍र्माण प्रक्रि‍या प्रारंभ हुई। इस उद्देश्‍य से वि‍भि‍न्‍न नीति‍यॉं और योजनाऍं बनाई गयीं और पंचवर्षीय योजनाओं के माध्‍यम से कार्यान्‍वि‍त की गयी।

पी वी नरसिंह राव ने १९९० के दशक के आरम्भिक दिनों में सुधारवादी आर्थिक नीतियाँ लागू कीं

1950 में जब भारत ने 3.5 फीसदी की विकास दर हासिल कर ली थी तो कई अर्थशास्त्रियों ने इसे ब्रिटिश राज के अंतिम 50 सालों की विकास दर से तिगुना हो जाने का जश्न मनाया था। समाजवादियों ने इसे भारत की आर्थिक नीतियों की जीत करार दिया था, वे नीतियां जो अंतर्मुखी थीं और सार्वजनिक क्षेत्रों के उपक्रमों के वर्चस्व वाली थीं। हालांकि 1960 के दशक में ईस्ट इंडियन टाइगरों (दक्षिण कोरिया, ताईवान, सिंगापुर और हांगकांग) ने भारत से दोगुनी विकास दर हासिल कर ली थी। जो इस बात का प्रमाण था कि उनकी बाह्यमुखी और निजी क्षेत्र को प्राथमिकता देने वाली आर्थिक नीतियां बेहतर थीं। ऐसे में भारत के पास 80 के दशक की बजाय एक दशक पहले 1971 में ही आर्थिक सुधारों को अपनाने के लिए एक अच्छा उदाहरण मिल चुका था।

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