पारिस्थितिक तंत्र के घटकों की व्याख्या करें।
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पारिस्थितिक तंत्र के घटकों की व्याख्या निम्न प्रकार से है :
पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण दो घटकों के मिलने से होता है अजैविक घटक तथा जैविक घटक।
(I) अजैविक घटक :
इन्हें निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है -
(1) जलवायुवीय या भौतिक कारक :
इन कारकों के अंतर्गत भौतिक कारकों जैसे प्रकाश ,ताप, वर्षा, नमी तथा मृदीय कारकों जैसे मृदा pH , मृदा जल, मृदा संरचना आदि को सम्मिलित किया गया है।
(2) अकार्बनिक पदार्थ :
ये वे पदार्थ है जो जीव के रसायनिक संघठन के घटक होते हैं तथा पदार्थों के चक्रण में भाग लेते हैं। इनमें जल नाइट्रोजन कार्बन डाइऑक्साइड , ऑक्सीजन , आदि सम्मिलित है।
(3) कार्बनिक पदार्थ :
यह पदार्थ पारितंत्र के जैविक व अजैविक घटकों के मध्य संबंध स्थापित करते हैं। इनमें प्रोटीन , कार्बोहाइड्रेट, वसा , न्यूक्लिक अम्ल ,आदि को सम्मिलित किया गया है।
(II) जैविक घटक :
पोषण के आधार पर जैविक घटकों को भी दो भागों में बांटा जा सकता है :
(1) स्वपोषी घटक या उत्पादक :
ऐसे सभी जीव जो अपने पोषण के लिए स्वयं अकार्बनिक पदार्थों से जटिल कार्बनिक पदार्थ का निर्माण कर सकते हैं , उन्हें स्वपोषी घटकों में सम्मिलित किया जाता है। ये घटक सूर्य के प्रकाशीय ऊर्जा की सहायता से हरित लवक की उपस्थिति में अकार्बनिक पदार्थ जैसे कार्बन डाइऑक्साइड व जल का उपयोग करके प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा भोजन का निर्माण करते हैं।
इनमें समस्त हरे पादप, प्रकाश संश्लेषण जीवाणु तथा सायनोबैक्टीरिया को उत्पादक कहा गया है।
(2) विषमपोषी घटक या उपभोक्ता :
ऐसी जीव, जो स्वपोषी घटकों द्वारा निर्मित भोजन से अपने पोषण की प्राप्ति करते हैं, क्योंकि वे स्वयं अपने लिए कार्बनिक पदार्थों का निर्माण नहीं कर सकते हैं, विषमपोषी कहलाते हैं जैसे - खरगोश, चूहा, मेंढक, शेर, मनुष्य ,आदि। ये जीव या तो पादपों से प्रत्यक्ष रूप से भोजन प्राप्त करते हैं या फिर अप्रत्यक्ष रूप से अन्य दूसरे जीवो से भोजन प्राप्त करते हैं। इसी कारण ये जीव उपभोक्ता कहलाते हैं
विषमपोषी जीवों को उनके आकार के आधार पर निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है :
(i) दीर्घ उपभोक्ता या भक्षकपोषी :
इस श्रेणी में उन जीवों को रखा गया है जो भोजन को सीधे ही ग्रहण करते हैं तथा उसका पाचन करके ऊर्जा की प्राप्ति करते हैं।
दीर्घ उपभोक्ता को भी भोजन की प्रकृति के आधार पर इन प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है -
(क) प्रथम श्रेणी उपभोक्ता : वे जीव , जो अपना भोजन सीधे ही उत्पादकों से प्राप्त करते हैं प्रथम श्रेणी उपभोक्ता कहलाते हैं । इन जीवो को शाकाहारी कहा जाता है , क्योंकि ये पादप के विभिन्न भागों का भक्षण करते हैं, जैसे कीट, चूहे , हिरण, खरगोश, चिड़िया, बकरी आदि प्राथमिक उपभोक्ता के कुछ उदाहरण है।
(ख) द्वितीय श्रेणी उपभोक्ता :
ऐसे जीव जो शाकाहारी जंतुओं का शिकार करके अपने भोजन की प्राप्ति करते हैं, द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता या प्रथम मांसाहारी भी कहलाते हैं ; जैसे पक्षी, बिल्ली, कुत्ता ,मेंढक , लोमड़ी, भेड़िया ,आदि।
(ग) तृतीय श्रेणी उपभोक्ता :
ऐसे जीव जो द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ताओं को खाकर अपने भोजन की प्राप्ति करते हैं, तृतीय श्रेणी उपभोक्ता या द्वितीयक मांसाहारी कहलाते हैं। इन्हें सर्वोच्च उपभोक्ता भी कहते हैं। जैसे बाज , शेर
(ii) सूक्ष्म उपभोक्ता या मृतोपजीवी या अपघटक :
वे जीव, जो पादप और जंतुओं के मृत शरीर के जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल अकार्बनिक पदार्थों में तोड़कर अपना भोजन प्राप्त करते हैं, अपघटक कहलाते हैं जैसे जीवाणु, कवक
आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।
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Answer:
पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण दो घटकों के मिलने से होता है अजैविक घटक तथा जैविक घटक।