प्र: "स्वालालंबी भारत स्वाभिमानी भारत" विषय पर 400 शब्दों में निबंध लिखें .
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भारत स्वाभिमान न्यास योग गुरू बाबा रामदेव द्वारा 638365 गाँवों तक योग पहुँचाने के लक्ष्यों को लेकर स्थापित एक न्यास है। यह न्यास ५ जनवरी २००९ को दिल्ली में पंजीकृत कराया गया था। इसका उद्देश्य भ्रष्टाचार, गरीबी, भूख, अपराध, शोषण मुक्त भारत का निर्माण करना है। इस न्यास का प्रमुख उद्देश्य भारत के सोये हुए स्वाभिमान को जगाने के लिये अखिल भारतीय स्तर पर एक राष्ट्रव्यापी आन्दोलन खड़ा करना है।[1] न्यास स्वयं को गैर राजनीतिक बताता है।
भारत स्वाभिमान स्वदेशी वस्तुओं का प्रचार करने के साथ विदेशी कम्पनियों का बहिष्कार करती है।भारत स्वाभिमान न्यास में राजीव दीक्षित जी , डॉ जयदीप आर्य , राकेश कुमार व् बहिन सुमन ने स्वदेशी की अवधारणा से प्रेरित होकर सन्गठन की बागडोर सम्भाली। बाबा रामदेव ने राजीव दीक्षित को भारत स्वाभिमान ट्रस्ट का सचिव नियुक्त किया था। जिसमे उन्होंने कालेधन व स्वदेशी के आन्दोलन के साथ साथ भ्रष्टाचार मुक्त भारत के लिए जीतोड़ मेहनत की।
स्वदेशी आन्दोलन तथा आज़ादी बचाओ आन्दोलन इसी आंदोलन के भाग नहीं हैं।
स्वावलंबन का अर्थ है अपने बलबूते पर कार्य करने वाला व्यक्ति । स्वावलंबन ही तो सफलता की कुंजी है। स्वावलंबी व्यक्ति जीवन में कीर्ति तथा वैभव दोनों ही अर्जित करता है। दूसरों के सहारे जीने वाला व्यक्ति सदा ही तिरस्कार का पात्र बनता है। निरंतर निरादर तथा तिरस्कार पाने के कारण उसमें हीन भावना घर कर लेती है। जीवन का यह सच केवल व्यक्ति विशेष पर ही नहीं, अपितु हर जाति, हर राष्ट्र, हर धर्म पर लागू होता है।
स्वावलम्बन अथवा आत्मनिर्भरता दोनों का वास्तविक अर्थ एक ही है-अपने सहारे रहना अर्थात् अपने आप पर निर्भर रहना। ये दोनों शब्द स्वयं परिश्रम करके, सब प्रकार के दुःख-कष्ट सह कर भी अपने पैरों पर खड़े रहने की शिक्षा और प्रेरणा देने वाले शब्द हैं। यह हमारी विजय का प्रथम सोपान है। इस पर चढ़कर हम गन्तव्य-पथ पर पहुँच पाते हैं। इसके द्वारा ही हम सृष्टि के कण-कण को वश में कर लेते हैं। गाँधी जी ने भी कहा है कि वही व्यक्ति सबसे अधिक दुःखी है जो दूसरों पर निर्भर रहता है।
मनुस्मृति में कहा गया है – जो व्यक्ति बैठा है, उसका भाग्य भी बैठा है और जो व्यक्ति सोता है, उसका भाग्य भी सो जाता है, परन्तु जो व्याक्त अपना कार्य स्वय करता है, केवल उसी का भाग्य उसके। हाथ में होता है। अतः सांसारिक दुखों से मुक्ति पाने की रामबाण दवा है – स्वावलम्बन । न स्वावलम्बी या आत्मनिर्भर व्यक्ति ही सही अर्थों में जान पाता है कि संसार में दुःख-पीड़ा क्या होते हैं तथा सुख-सुविधा का क्या मूल्य एवं महत्त्व हुआ करता है। वह ही समझ सकता है कि मान-अपमान किसे कहते हैं? अपमान की पीडा क्या होती है? परावलम्बी व्यक्ति को तो हमेशा मान-अपमान की चिन्ता त्याग कर, व्यक्ति होते हुए भी व्यक्तित्वहीन बनकर जीवन गुजार देना पड़ता है।
एक स्वतंत्र व स्वावलम्बी व्यक्ति ही मुक्तभाव से सोच-विचार कर के उचित कदम उठा सकता है। उसके द्वारा किए गए परिश्रम से बहने वाले पसीने की प्रत्येक बूंद मोती के समान बहुमूल्य होती है। स्वावलम्बन हमारी जीवन-नौका की पतवार है। यह ही हमारा पथ-प्रदर्शक है। इस कारण से मानव-जीवन में इसकी अत्यन्त महत्ता है।
आज का व्यक्ति अधिक-से-अधिक धन तथा सुख प्राप्त करना तो चाहता है। पर वह दूसरों को लूट-खसोट कर प्राप्त करना चाहता है अपने परिश्रम और स्वयं पर विश्वास व निष्ठा रखकर नहीं। इसीलिए वह स्वतंत्र होकर भी परतंत्र और। दखी है। इस स्थिति से छुटकारा पाने का एक ही उपाय है और वह है स्वावलम्बी एवं आत्मनिर्भर बनना ।
Superhero ye jyada hi bada ho gaya tha , Sorry ☺️