प्रकृति के विमुख होकर हम क्या-क्या एवं रह हैं अपने विचार लिखें
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Hame ped lagana chahiye...
Hame Pasuyou ka khayal rakhna chahiye
Hame paper or wood kam istamal karna chahiye
Hame Cycle chalakar kam distance jana chahiye
Hame public transport ka istamal karna chahiye
Hame ped nahi katna chahiye
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Hope it helped please mark me as branliest answer .....☺
Answer:
भौतिक जगत में जीवन बुरी तरह भाग रहा है। मनुष्य अपने स्वभाव से विपरीत दिशा की ओर अग्रसर है। वह अपनी प्रकृति से प्रतिपल विमुख हो रहा है। यह सोचने-समझने का अवसर भी नहीं मिल पा रहा कि इतनी भागदौड़ का अन्तिम हासिल क्या है? जीवन के बारे में समुचित चिन्तन करना अच्छी बात है, पर प्रतियोगी और प्रतिस्पर्धा बन विचार पर विचार चढ़ाना और किसी एक विचार के क्रियान्वयन से लाभान्वित होने से हमेशा वंचित रह जाना, यह द्वैत है। इससे कुंठा बढ़ती है और मानसिक सन्तुलन बिगड़ता है। जिस तरह घर की साफ-सफाई करने के बाद हम अनावश्यक सामान को छाँटकर फेंक देते हैं, यदि उसी प्रकार विचारों के घर की भी प्रतिदिन सफाई कर अनावश्यक विचारों को फेंक दें तो हमारे जीवन पर बहुत सुखद असर होगा।
आज अधिकांश मनुष्य विचारों के जंजाल में उलझे हुए हैं। इस समय सभी को आत्मपरीक्षण की जरूरत है। विचारों को परख कर उनमें से लाभकारी विचार सहेजें। उलझन बढ़ाने वाले विचारों का शमन करें। यह कार्य नियमित करें। इससे चमत्कारिक परिणाम मिलेंगे। विचारों के उद्वेलन से छूटने के लिये प्रकृति की दिनचर्या पर ध्यान लगाएँ। देखें कि कैसे सुबह से शाम तक प्रकृति अपना दिन गुजारती है। वृक्षों के बारे में सोचें। अपने जीवन के लिये उनकी प्राकृतिक उपयोगिता का विचार करें।
वृक्ष की जड़ों से लेकर उसके फलों तक का प्रयोग मनुष्य की जिन्दगी की किसी-न-किसी जरूरत के लिये हो रहा है। इस भाव में वृक्ष के प्रति आभार प्रकट करें। फूलों के रंग-बिरंगे गुच्छे, हरी घास, सूर्योदय, नीला आकाश, सूर्यास्त, चंद्रोदय, सितारों की टिमटिम और आकाश में उड़ते पक्षियों को देखें। सामान्य रूप में यह सब कुछ विशिष्ट नहीं होता। ऐसा इसलिये होता है कि इन प्राकृतिक घटनाओं के प्रति हम विवेकशील होकर नहीं सोचते, लेकिन यदि हम प्रकृति के इन कारकों की दिनचर्या और इनके कार्यों व अस्तित्व के बारे में गहनता से मनन करें, तो हमें यही कारक धरती पर अनमोल अनुभव प्रदान करेंगे। हम प्रायः तरह-तरह के जीव-जन्तुओं का प्राकृतिक विचरण और पक्षियों को धीमे व शान्त गति से गगन विचरण करते देखते हैं। वे प्रकृति के नियमों से सदैव जुड़े रहते हैं। प्रातः काल से उनका चलना-विचरना और कलरव प्रारम्भ हो जाता है। रात होते ही वे अपने आश्रय स्थलों व घोसलों में पहुँच जाते हैं। उनके जीवन में राष्ट्र, धर्म और जीवन के मतैक्य नहीं होते। वे जीवन के स्वभाव में जीते हैं। प्राकृतिक नियमों से संचालित होते हैं। इसीलिये उन्हें भौतिक संसाधनों की भी आवश्यकता नहीं होती। वे भौतिक भागदौड़ से भी निर्लिप्त होते हैं। एक पक्षी अपना नीड़ स्वयं बनाता है। प्रकृति और इसकी घटनाओं से ये सब बातें सीख हम अपना आत्मपरीक्षण करते रहें तो हमें जीवन के प्रति सर्वथा एक नया व सुखद दृष्टिकोण मिलेगा। भौतिक संसाधनों के अभाव में असुरक्षित भावनाओं से घिर जाना मानवीय कमजोरी है।
पशु-पक्षियों से संसाधन विहीन होकर जीना सीखें। पेड़-पौधों से परोपकार के लिये स्वावलम्बी स्वभाव का ज्ञान पाएँ। यह सब तभी सम्भव है, जब ह रुककर जीवन के बारे में नियत दिनचर्या से अलग होकर कुछ सोचें-विचारें। वास्तव में यही आत्म साक्षात्कार की प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया हमें स्वयं स्वाभाविक रूप से आत्मसात करनी होगी। निःसन्देह इस विचार-पथ की यात्रा अत्यन्त आनन्ददायक होगी। फलस्वरूप भौतिक जगत से भी हम एक आवश्यक सामंजस्य स्थापित कर सकेंगे। आज हमारे सम्मुख भौतिक जगत की अनेक ऐसी चुनौतियाँ खड़ी हैं, जिन्हें हमें खुद के साथ सामाजिक परिवेश की भलाई के लिये समाप्त करना है, लेकिन इन चुनौतियों से लड़ने की स्वाभाविक शक्ति का ह्रास भी हमारे भीतर से निरन्तर हो रहा है।
इन परिस्थितियों में मनुष्य प्राकृतिक व्यवस्था के अनुसार रहने के लिये थोड़ी-बहुत वैचारिक स्थिरता अपनाए और उसी के हिसाब से थोड़ा व्यवहार करे तो इस अभ्यास से भी हमें बहुत कुछ मिल सकता है। हम यदि एक परिवार का हिस्सा हैं, यदि हम किसी के अभिभावक हैं या किसी के बच्चे हैं, तो दोनों स्थितियों में हमारा उत्तरदायित्व बनता है कि हम अपने बड़े-बूढ़ों के साथ-साथ भावी पीढ़ी के लिये एक सुरक्षित मानसिक-भौतिक वातावरण बनाएँ। इसके लिये हमें सर्वप्रथम अपनी भौतिक लगन को थामना होगा। जीवन को पूरी तरह न सही पर थोड़ा सा प्रकृति के अनुरूप जियें। इस तरह का अभ्यास हमारे जीवन में प्रतिदिन हो। छोटे बच्चे हमें यह सब करता हुआ देखेंगे तो निश्चित रूप में वे ऐसे अभ्यास को सम्पूर्णता से अपने जीवन में उतारेंगे और जब ऐसा होगा तभी धरती का जीवन हर प्रकार से जीने योग्य हो सकेगा। नववर्ष को हम मात्र गिनती के परिवर्तन के रूप में न देखकर, ऐसे ही संकल्पों को साकार करने का माध्यम बनायेंगे तो अवश्य ही कुछ सार्थक कर सकेंगे।
बहरहाल बता दें कि पृथ्वी जब सूर्य का एक चक्र पूरा कर लेती है तो यह समय 365 दिन का होता है और इस कालखंड को हम एक वर्ष कहते हैं, यानी नववर्ष का आगमन वैज्ञानिक तौर पर पृथ्वी की सूर्य की एक परिक्रमा पूर्ण कर नई परिक्रमा के आरम्भ के साथ होता है। वह परिक्रमा जिसमें ऋतुओं का एक चक्र भी पूर्ण होता है। पूरी दुनिया में नववर्ष इसी चक्र के पूर्ण होने पर विभिन्न नामों से मनाया जाता है। इसी तरह विचारों के एक चक्र पूरा होने पर हमारे मन में नयेपन की शुरुआत करनी होगी जो प्रकृति के नजदीक जाने से ही सम्भव हो सकेगा।