Hindi, asked by ritikajakhotiya4285, 1 year ago

प्रकृति पर मानवीय क्रिया कलापों का प्रभाव दिखाते हुए पर एक कहनी लिखे

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Answered by siddhi6029
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वातावरण बदलते पर्यावरण के साथ बदलती हुई हमारी पारिस्थितिकी और जीवनचर्या ने एक नई जीवनशैली को जन्म दिया है। इस जीवनशैली में प्राकृतिक वातावरण की कमी और कृत्रिम वातावरण की अधिकता देखने को मिलती है।

आज कल कुछ समय से नैसर्गिक वातावरण से अलग रहने के परिणामों की चर्चा जोरों पर है। तेजी से बदलता रहन-सहन, पर्यावरण और इसके प्रति लोगों के बदलते नजरिये ने पर्यावरणविज्ञानियों के साथ साथ चिकित्सकों का भी ध्यान आकर्षित किया है। पिछले कुछ दशकों में मानवीय जीवनचर्या, वातावरण और सोच में आमूल चूल परिवर्तन हुआ है। मानवीय जीवनशैली और वातावरण में हो रहा यह परिर्तन द्विदिशात्मक है। अर्थात् वातावरण में हो रहे परिवर्तनों से मानव की जीवनचर्या और विचारधारा में बदलाव देखने को मिलता है और मानवों द्वारा किए जा रहे परिवर्तनों (जैसे शहरीकरण, औद्योगीकरण इत्यादि) के प्रत्यक्ष परिणाम हमारी पारिस्थितिकी, पर्यावरण और प्रकृति तंत्र पर देखने को मिलते हैं। वातावरण और मानव के इस पारस्परिक अंतःक्रिया के परिणामस्वरूप विविध स्तर पर पारिस्थितिकी, सामाजिक परिवर्तन के साथ ही अनुकूलन भी देखने को मिलता है। अब प्रश्न यह उठता है कि यह परिवर्तन कितना वांक्षनीय है और इसके दूरगामी परिणाम क्या हैं?

विशेषतौर पर महानगरीय जीवनशैली की बात की जाए तो हम यह देखेंगे कि यहां के वातावरण में नैसर्गिकता का लोप होता दिखाई पड़ता है। हमारे दैनिक जीवन में प्राकृतिक वातावरण की कमी होना एक ऐसी स्थिति है जोकि मानवों द्वारा खुद ही खड़ी की गई है और इसके बहुत ही दूरगामी परिणाम भी हैं। दैनिक जीवन में प्रकृति की इस कमी से कुछ मनोदैहिक विकारों के साथ कुछ हानिकारक सामाजिक परिवर्तन भी हो सकते हैं। इन संपूर्ण अनियमितताओं को Nature Deficit Disorder का नाम दिया गया है। इस शब्दावली का सर्वप्रथम प्रयोग रिचर्ड लाउव द्वारा इनकी प्रसिद्ध पुस्तक Last Child in the Woods में किया गया था। Nature Deficit Disorder किसी चिकित्सकीय बिमारी या निदान का नाम नहीं है बल्कि यह एक ऐसी स्थिति का नाम है जो कि पूरी तरह से मानव निर्मित है। एक सामान्य महानगरीय जीवनशैली की चर्चा की जाए तो हम देखेंगे कि इन जगहों पर हमें पूर्ण प्राकृतिक स्थितियां और स्थान, इन दोनों का अभाव देखने को मिलता है। यहां यह उल्लेखनीय है कि मानव द्वारा विकसित किए गए स्थानों को पूर्ण प्राकृतिक नहीं कहा जा सकता। उदाहरण के लिए पार्क इत्यादि। जंगलों, पहाड़ों और गांव के मैदानों जैसी अनगढ जगहों को पूर्ण प्राकृतिक कहा जा सकता है।

मानव निर्मित इस स्थिति को अलगाववाद की एक ऐसी भावना के रूप में निरूपित किया जा सकता है जोकि क्रमिक रूप से प्राकृतिक विचारधारा से दूर लेती जा रही है। इसके प्रभावों को मुख्यतः दो भागों में बाटा जा सकता है। प्रथमतः हमारी शारीरिक और मानसिक स्थितियों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव और दूसरे चरण में सामाजिक और भावी जीवन पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को एक दूसरे से जोड़ कर देखा जा सकता है।

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