प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।
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प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण
जिस प्रकार किसी प्रेमी को सिर्फ और सिर्फ उसकी प्रेमिका ही दिखती है ठीक उसी प्रकार गोपियों को श्री कृष्ण दिखते हैं। गोपियाँ श्री कृष्ण के प्रेम में पागल हैं। गोपियों को योग साधना की बात बेकार लगती है।
गोपियों की मनोस्थिति उस बच्चे के समान है जिसे मनपसंद खिलौने की जगह कोई झुनझुना पकड़ा दिया गया हो। गोपियों के लिए योग साधना सिर्फ कृष्ण प्रेम ही है। गोपियों का दृष्टिकोण एकदम स्पष्ट है कि प्रेम-बंधन में बंधे हृदय पर किसी उपदेश का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। चाहे वे उपदेश अपने ही प्रिय के द्वारा क्यों न दिए गए हों। यही कारण है कि अपने ही प्रिय श्रीकृष्ण के द्वारा भेजा गया योग-संदेश उनको प्रभावित नहीं कर सका। गोपियों का मन तो कृष्ण के प्रेम में हमेशा से अचल है।
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प्रस्तुत पदों में योग-साधना के ज्ञान को निरर्थक बताया गया है। यह ज्ञान गोपियों के अनुसार अव्यवाहरिक और अनुपयुक्त है। उनके अनुसार यह ज्ञान उनके लिए कड़वी ककड़ी के समान है जिसे निगलना बड़ा ही मुश्किल है। सूरदास जी गोपियों के माध्यम से आगे कहते हैं कि ये एक बीमारी है। वो भी ऐसा रोग जिसके बारे में तो उन्होंने पहले कभी न सुना है और न देखा है। इसलिए उन्हें इस ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। उन्हें योग का आश्रय तभी लेना पड़ेगा जब उनका चित्त एकाग्र नहीं होगा। परन्तु कृष्णमय होकर यह योग शिक्षा तो उनके लिए अनुपयोगी है। उनके अनुसार कृष्ण के प्रति एकाग्र भाव से भक्ति करने वाले को योग की ज़रूरत नहीं होती।