प्रश्न 1. भारतीय दल-व्यवस्था की कोई चार विशेषताएं बताएँ।
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साँचा:Politics sidebar द्विदलीय प्रणाली एक दल प्रणाली हैं, जहाँ दो प्रमुख राजनीतिक दल सरकार के भीतर, राजनीति को प्रभावित करते हैं। दो दलों में से आम तौर पर एक के पास विधायिका में बहुमत होता हैं और प्रायः बहुमत या शासक दल कहा जाता हैं, जबकि दूसरा अल्पमत या विपक्ष दल कहा जाता हैं।
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Explanation:
भारतीय दलीय व्यवस्था की विशेषता
अन्य देशों के राजनीतिक दलों की तरह, भारतीय पार्टी प्रणाली की अपनी विशेषताएं हैं, जिनमें से मुख्य हैं: –
1.बहुदलीय प्रणाली (Multi Party System)-
भारत में स्विट्जरलैंड की तरह ही बहुदलीय व्यवस्था है। मई 1991 के लोकसभा चुनावों के अवसर पर, चुनाव आयोग ने नौ राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता दी और उन्हें चुनाव चिन्ह आवंटित किए।
ये दल इस प्रकार हैं – कांग्रेस (आई), कांग्रेस (एस), बी.जे.पी, जनता दल, जनता दल (एस), लोक दल, जनता पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और मार्क्सवादी पार्टी। 22 फरवरी, 1992 को चुनाव आयोग ने तीन राष्ट्र स्तर की दल, जनता दल (एस), लोकदल और कांग्रेस (एस) की मान्यता रद्द कर दी।
इस प्रकार, चुनाव आयोग ने 6 राष्ट्रीय स्तर के दलों को मान्यता दी। 23 दिसंबर 1994 को चुनाव आयोग ने समता पार्टी को एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल के रूप में मान्यता दी। 25 दिसंबर, 1997 को चुनाव आयोग ने बहुजन समाज पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता दी।
वर्तमान में, चुनाव आयोग ने सात राष्ट्रीय दलों को मान्यता दी है। राष्ट्रीय दलों के अलावा, कई अन्य राज्य स्तर और क्षेत्रीय दल हैं।
क्षेत्रीय दलों में पंजाब में शिरोमणि अकाली दल, हरियाणा में इंडियन नेशनल लोक दल, जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस , असम में असम गण परिषद, तमिलनाडु में अन्ना डी.एम.के,आंध्र प्रदेश में तेलुगु देशम, केरल कांग्रेस और केरल में मुस्लिम लीग, महाराष्ट्र में रिपब्लिकन पार्टी, शिवसेना और किसान मजदूर पार्टी, गोवा में महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी, नागालैंड में नागा राष्ट्रीय परिषद और सिक्किम में डेमो क्रेटिक फ्रंट वर्णनात्मक हैं।
वर्तमान में, चुनाव आयोग ने 58 दलों को राज्य स्तरीय दलों के रूप में मान्यता दी है। आर.ए.गुपाला स्वामी के अनुसार, भारत में दलों की संख्या इतनी बड़ी है कि यह न केवल लोकतांत्रिक संस्थानों के लिए हानिकारक है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए भी हानिकारक है।
एक बहुदलीय प्रणाली संसदीय प्रणाली के लिए खतरनाक है,क्योंकि यह राष्ट्रीय एकता को कमजोर कर सकती है। संकटकल के समय ज्यादा दलों के कारण राष्ट्रीय एकता हासिल नहीं की जा सकी । स्थायी शासन के लिए केवल 2-3 दल होने चाहिए। बहुदलीय व्यवस्था के कारण शासन स्थिर नहीं है। 1967 के चुनावों के बाद, कई राज्यों में शासन में तेजी से बदलाव हुए और कई राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा।
2. एक पार्टी के प्रभुत्व का अंत (End of one Party Dominance)-
भारत में बहुदलीय प्रणाली पश्चिम देशों की बहुदलीय प्रणाली, जैसा कि फ्रांस में है इस से बहुत अलग है, इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत में कई दल चुनावों में भाग लेते हैं, लेकिन 1977 से पहले केंद्र और राज्यों में कांग्रेस का वर्चस्व था।
कांग्रेस ने क्रमशः 1952, 1957, 1962 और 1967 में क्रमशः 364,371,361 और 283 सीटें जीतीं। 1967 में कांग्रेस को ज्यादा सफ़लता न मिली जिसके कारण कई राज्यों में गैर-कोंग्रेसी मंत्री मंडल बने ,पर वह इतने मुर्ख थे की उन्होंने इस सुनहरे मौके का पूरा फायदा उठाने के बजाए अपना नुकसान ही किया। उन्होंने लोगों का भला न करके अपना स्वार्थ पूरा करने की कोशिश की।
इसलिए गैर-कांग्रेसी सरकारें लंबे समय तक न चल सकीं। श्रीमती इंदिरा गांधी ने 1971 में मध्य-कालीन चुनाव कराए जिसमें इंदिरा कांग्रेस इतनी सफल प्राप्त हुई कि कांग्रेस पहले से कहीं अधिक शक्तिशाली हो गई। लोकसभा में कांग्रेस ने 352 सीटें जीत प्राप्त हुई। 19 राज्यों में से 8 राज्यों की विधान सभाओं के लिए भी चुनाव हुए और इन सभी राज्यों में कांग्रेस को भारी बहुमत मिला।
एक दल की अध्यक्षता लोकतंत्रीय-विरोधी होती है, क्योंकि एक दल की अध्यक्षता के कारण दूसरे दल विकसित नहीं हो सकते है।