प्रश्न 2.
राष्ट्रीय आंदोलन में राजस्थान के बारहठ परिवार के योगदान की विवेचना कीजिए।
Answers
राजस्थान के बारहठ परिवार का भारत के स्वतंत्रता संग्राम के राष्ट्रीय आंदोलन में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। बारहठ परिवार के तीन सदस्यों केसरी सिंह बारहठ, जोरावर सिंह बारहठ तथा प्रताप सिंह बारहठ के योगदान का विवरण प्रस्तुत है...
केसरी सिंह बारहठ — केसरी सिंह बारहठ का जन्म सन 1870 में भीलवाड़ा के समीप देवपुरा नामक गांव में हुआ था। बाद में वो उदयपुर के महाराणा के पास चले आए। इस दौरान वह अनेक क्रांतिकारियों के संपर्क में आए जिसमें रासबिहारी बोस, श्यामजी कृष्ण वर्मा आदि थे प्रमुख थे। इस तरह वो भी वह क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़ गए। जब उदयपुर के महाराणा फतेह सिंह गवर्नर लार्ड कर्जन के आमंत्रण पर में दिल्ली दरबार में भाग लेने के लिए जाने लगे तो ‘केसरी सिंह बारहठ’ नही चाहते थे कि महाराणा अंग्रेजों के इस कार्यक्रम में भाग लें, इसलिए ‘चेतावनी रा चुंगट्या’ नामक कृति की रचना की, जिसमे 13 सोरठे थे। इन सोरठों को पढ़कर महाराणा दिल्ली जाकर भी दिल्ली दरबार में शामिल नही हुये।
केसरी सिंह बारहठ पर ब्रिटिश सरकार की गोपनीय रिपोर्ट के अनुसार राजद्रोह और बगावत के आरोप लगाए गए। इसके अतिरिक्त उन पर ब्रिटिश सेना के भारतीय सैनिकों को भड़काने तथा ब्रिटिश शासन के विरुद्ध अपने षड्यंत्र में शामिल करने के आरोप भी लगाए गए। उन पर यह भी आरोप लगाया गया कि उन्होंने प्यारेलाल नामक साधु की हत्या की।
इन सब आरोपों के कारणों ने सन् 1914 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया और उन पर मुकदमा चलाया गया। अदालत ने उन्हें 20 वर्ष की सजा सुनाई। उन्हें हजारीबाग के केन्द्रीय कारागार में भेज दिया गया। सेंट्रल जेल (बिहार) भेज दिया गया। कुछ गणमान्य व्यक्तियों के प्रयासों से वो 1920 में रिहा हो गये। 1941 में उनकी मृत्यु हो गयी।
प्रताप सिंह बारहठ — प्रताप सिंह बारहठ केसरी सिंह के पुत्र थे। केसरी सिंह ने प्रताप सिंह को स्कूल में पढ़ाई करने हेतु भेजा परंतु शीघ्र प्रताप सिंह जी अपने पिता की भांति क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए। एक बार बीकानेर आते समय जोधपुर के पास एक स्टेशन मास्टर ने उन्हें धोखा देकर अंग्रेजों से पकड़वा दिया। प्रताप सिंह बारहठ को बरेली की जेल में रखा गया अंग्रेज अफसर क्वीवलैंड ने प्रताप सिंह पर क्रांतिकारी रासबिहारी बोस व अन्य क्रांतिकारियों का पता देने का बहुत दबाव बनाया परंतु प्रताप सिंह बारहठ अपने निश्चय से नहीं डिगे और उन्होंने किसी अपने किसी भी क्रांतिकारी साथी का पता नहीं बताया। इससे चिढ़कर अंग्रेजों ने प्रताप सिंह बारहठ को अनेक अमानवीय यातनाएं दी। जिससे 27 मई 1919 को जेल में ही उनकी मृत्यु हो गई।
जोरावर सिंह बारहठ — जोरावर सिंह बारहठ केसरी सिंह बारहठ के छोटे भाई थे। वह भी अपने बड़े भाई के भांति क्रांतिकारी थे। एक बार उन्होंने दिल्ली में वायसराय लॉर्ड हॉर्डिंग के जुलूस में बम फेंका। वायसराय तो किसी तरह बच गया परंतु उसका महावत मारा गया। इसके बाद जोरावर सिंह भूमिगत हो गए और अपना बाद में उन्होंने अपने अधिकतर समय साधुरूप में इधर-उधर भटक बैरागी के रूप में बिताया। उनके नाम एक मर्डर केस में वारंट जारी था, परंतु जोरावर सिंह को अंग्रेज उनके जीवन में कभी भी पकड़ नहीं पाए।