प्रदूषण पर निबंध - Pradushan par nibandha - Essay on Pollution
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प्रकृति का एक निश्चित चक्र है जिस अनुशासन के अंतर्गत ऋतु परिवर्तन, वृष्टि, फसलों का विकास होना जैसे अनगिनत कार्य स्वत: सम्पादित होते हैं| कोई भी कृत्रिम या बाहरी हस्तक्षेप इस चक्र को बाधित करता है तो सम्पूर्ण मानवजाति को इसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ते है| अगर हमें प्रदूषण को परिभाषित करना हो तो सरल शब्दों में हम कह सकते हैं कि प्राकृतिक संतुलन में दोष उत्पन्न होना| इसके अनेक प्रकार है पर मुख्यतः हम इसके तीन प्रकारों का अध्ययन करेंगे|
सर्वप्रथम हम वायु प्रदूषण पर चर्चा करेंगे| वृक्षों की वृहद स्तर पर कटाई कार्बन डाई आक्साइड की वृद्धि का प्रमुख कारण है| दूसरी ओर बढ़ते औद्योगिक कारखाने, वाहन और निर्माणाधीन इमारतें वायु प्रदूषण को उत्तरोत्तर बढ़ा रही है| आक्सीजन की कमी से अनेक बीमारियाँ आमंत्रित हुई है| जल प्रदूषण की वजह से हमें समस्त खाद्य पदार्थ ,फल सब्जिया अशुद्ध मिल रही है| लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती जा रही है| विज्ञान ने हमें विकसित संसाधन दिए ताकि हमारा जीवन आरामदेह हो सके| पर साधनों के दुरूपयोग ने वायु प्रदूषण को बढ़ावा दिया है| वाहनों का शोर, संचार साधनों का शोर, निर्माण प्रक्रिया में प्रयुक्त मशीनों का शोर , चहु ओर ह्म शोर से घिरे है जो मानसिक तनाव, बहरेपन जैसी बीमारियों को खुला आमन्त्रण है|
हमने विभिन्न प्रकार के प्रदूषण व उसके कारणों पर विचार किया अगर हम इनके उपचार की बात करें तो सर्वप्रथम सभी को ज्यादा से ज्यादा वृक्ष लगाने का संकल्प लेना चाहिए| प्राकृतिक संसाधनों का समुचित प्रयोग करना चाहिए जैसे वर्षा जल संचयन करना, बिजली पानी बचाना इत्यादि| दूसरी ओर कृत्रिम साधनों से दूर रहना जैसे एयर कंडीशन का प्रयोग न करना, मोबाइल टावर्स शहर से बाहर लगाना| वाहन का प्रयोग आवश्यक होने पर ही करना, पैदल चलने की आदत रखना, नाबालिग को वाहन न चलाने देना| लोगों में जागृति लाना ताकि वे प्रदूषण रोकने में सहभागी बन सके|
सर्वप्रथम हम वायु प्रदूषण पर चर्चा करेंगे| वृक्षों की वृहद स्तर पर कटाई कार्बन डाई आक्साइड की वृद्धि का प्रमुख कारण है| दूसरी ओर बढ़ते औद्योगिक कारखाने, वाहन और निर्माणाधीन इमारतें वायु प्रदूषण को उत्तरोत्तर बढ़ा रही है| आक्सीजन की कमी से अनेक बीमारियाँ आमंत्रित हुई है| जल प्रदूषण की वजह से हमें समस्त खाद्य पदार्थ ,फल सब्जिया अशुद्ध मिल रही है| लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती जा रही है| विज्ञान ने हमें विकसित संसाधन दिए ताकि हमारा जीवन आरामदेह हो सके| पर साधनों के दुरूपयोग ने वायु प्रदूषण को बढ़ावा दिया है| वाहनों का शोर, संचार साधनों का शोर, निर्माण प्रक्रिया में प्रयुक्त मशीनों का शोर , चहु ओर ह्म शोर से घिरे है जो मानसिक तनाव, बहरेपन जैसी बीमारियों को खुला आमन्त्रण है|
हमने विभिन्न प्रकार के प्रदूषण व उसके कारणों पर विचार किया अगर हम इनके उपचार की बात करें तो सर्वप्रथम सभी को ज्यादा से ज्यादा वृक्ष लगाने का संकल्प लेना चाहिए| प्राकृतिक संसाधनों का समुचित प्रयोग करना चाहिए जैसे वर्षा जल संचयन करना, बिजली पानी बचाना इत्यादि| दूसरी ओर कृत्रिम साधनों से दूर रहना जैसे एयर कंडीशन का प्रयोग न करना, मोबाइल टावर्स शहर से बाहर लगाना| वाहन का प्रयोग आवश्यक होने पर ही करना, पैदल चलने की आदत रखना, नाबालिग को वाहन न चलाने देना| लोगों में जागृति लाना ताकि वे प्रदूषण रोकने में सहभागी बन सके|
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प्रदूषण
प्रस्तावना - मानव जीवन सदैव पर्यवरण से प्रभावित रहता है| अत: मानव जीवन सुचारू रूप से चले, इसलिए संतुलित पर्यावरण बहुत आवश्यक है| संतुलित पर्यावरण मे सभी तत्व एक निश्चित अनुपात मे विद्यमान रहते हैं. किंतु जब उसमे विषैले तत्वों की अथवा किसी एक तत्व की अधिकता या कमी हो जाती है, तो वातावरण दूषित हो जाता है| इसे ही ''प्रदूषण" कहा जाता है|
प्रदूषण का अर्थ - प्रदूषण से तात्पर्य जलवायु या भूमि के भौतिक, रसायनिक और जैविक गुणो मे होने वाला कोई भी अवांछनीय परिवर्तन है, जिससे मानव जीवन्, जीव-जन्तु, पेड़-पौधे इत्यादि को नुकसान हो सकता है| कोई भी वस्तु जो इस्तेमाल करके फैंक दी जाती है, प्रदूषण को बड़ाती है|
प्रदूषण के प्रकार - प्रदूषण के विभिन्न प्रकार है| जैसे वायु - प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण| इनमे सबसे हानिकारक वायु प्रदूषण है| सक्रिय ज्यालमुखी से निकलने वाली गैसों, खनिज तेल के जलने से भी वातावरण दूषित होता है| इसके अतिरिक्त कीट्नाशक- जीवनाशक रसायनों - निकेल, टाईटेनियम, बेरिलियँ, टीन, पारा, सीसा आदि के कार्बनिक योगिकों के कण वायु मे होते है, जो मानव जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं| इस से फेफड़ो मे अनेक रोग हो जाते हैं|
जल के बिना किसी भी प्राणी का जीवित रहना असंभव है| जल मे अनेक खनिज तत्व और गैस घुली होती हैं| जब इन तत्वों की मात्रा आवश्यकता से अधिक हो जाती है, तब जल प्रदूषित हो जाता है और वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो जाता है| कारखानों से निकले हुए वर्जित पदार्थ, किट्नाशक पदार्थ, रसायनिक खाद आदि से भी जल प्रदूषित हो जाता है| ऐसे जल के उपयोग से पीलिया, आँतो के रोग और संक्रामक रोग हो जाते हैं|
बड़े-बड़े नगरों मे अनेक प्रकार के वाहन, लौडस्पीकर, बाजे एवं औद्योगिक संस्थानों की मशीनों के शोर से ध्वनि प्रदूषण होता है| इससे मानव की सुनने की शक्ति कम होती है और उसके दिमाग़ पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है| परमाडु शक्ति के उत्पादन ने वायु, जल व ध्वनि, तीनों प्रदूषण को काफ़ी बड़ा दिया है| अत: इस समस्या का निराकरण करना चाहिए, अन्यथा इसके भयंकर परिणाम आगे आने वाले पीडियों को भुगतना पड़ेंगे|
Ankit1234:
hope it helps
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