Hindi, asked by omkumarlove, 8 months ago

पुस्तकालय पर एक निबंध 250 शब्दों में​

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Answered by iamsuk1986
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Answer:

dear I am providing you the essay more than 250 words . as some lines cannot be suitable as per according to your view that's why I am providing an essay which is bigger and more than 250 words so write the lines which you think is good and suitable as per your choice

Explanation:पुस्तकालय शब्द पर जब हम विचार करते हैं, तो हम इसे दो शब्दों के मेल से बना हुआ पाते हैं- पुस्तक+आलय; अर्थात् पुस्तक का घर । जहाँ विभिन्न प्रकार की पुस्तकें होती हैं और जिनका अध्ययन स्वतंत्र रूप से किया जाता है, उसे पुस्तकालय कहा जाता है । इसके विपरीत जहाँ पुस्तकें तो हों लेकिन उनका अध्ययन स्वतंत्र रूप से न हो और वे अलमारी में बन्द पड़ी रहती हों, उसे पुस्तकालय नहीं कहते हैं । इस दृष्टिकोण से पुस्तकालय ज्ञान और अध्ययन का एक बड़ा केन्द्र होता है ।

प्राचीनकाल में पुस्तकें आजकल के पुस्तकालयों की तरह एक जगह नहीं होती थीं; अपितु प्राचीनकाल में पुस्तकें हस्तलिखित हुआ करती थीं । इसलिए इन पुस्तकों का उपयोग केवल एक ही व्यक्ति कर पाता था । दूसरी बात यह कि प्राचीनकाल में पुस्तकों से ज्ञान प्राप्त करना एक बड़ा कठिन कार्य होता था; क्योंकि पुस्तकें आज जितनी प्रकार की एक ही जगह मिल जाती हैं; उतनी तब नहीं मिलती थीं ।

इसलिए विविध प्रकार की पुस्तकों से आनन्द, ज्ञान या मनोरंजन करने के लिए आज हमें जितनी सुविधा प्राप्त हो चुकी हैं, उतनी इससे पहले नहीं थीं । इस प्रकार से पुस्तकालय हमारी इस प्रकार की सुविधाओं को प्रदान करने में आज अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका को निभा रहे हैं ।

पुस्तकालय की कोटियाँ या प्रकार कई प्रकार के होते हैं । कुछ पुस्तकालय व्यक्तिगत होते हैं, कुछ सार्वजनिक होते हैं और कुछ सरकारी पुस्तकालय होते हैं । व्यक्तिगत पुस्तकालय, वे पुस्तकालय होते हैं, जो किसी व्यक्ति-विशेष से ही सम्बन्धित होते हैं ।

ऐसे पुस्तकालयों में पुस्तकों की संख्या बहुत ही सीमित और थोड़े प्रकार को होती है । हम कह सकते हैं कि व्यक्तिगत पुस्तकालय एक प्रकार से स्वतंत्र और ऐच्छिक पुस्तकालय होते हैं । इन पुस्तकालयों का लाभ और उपयोग उठाने वाले भी सीमित और विशेष वर्ग के ही विद्यार्थी होते हैं । इन पुस्तकालयों की पुस्तक बहुत सामान्य या माध्यम श्रेणी की होती हैं । व्यक्तिगत पुस्तकालय को निजी पुस्तकालय की भी संज्ञा दी जाती है । इस प्रकार के पुस्तकालय मुख्य रूप से धनी और सम्पन्न वर्ग के लोगों से चलाए जाते हैं । ऐसे पुस्तकालयों की संख्या भी पाठकों के समान ही सीमित होती है; क्योंकि स्वतंत्र अधिकार के कारण इन पुस्तकालयों के नियम-सिद्धान्त का पालन करने में सभी पाठक समर्थ नहीं हो पाते हैं ।

संस्थागत पुस्तकालय भी पुस्तकालयों के विभिन्न प्रकारों में एक विशेष प्रकार का पुस्तकालय है । संस्थागत पुस्तकालय का अर्थ है-किसी संस्था द्वारा चलने वाले पुस्तकालय । ऐसे पुस्तकालय स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों या किसी अन्य संस्था के द्वारा संचालित हुआ करते हैं । इस प्रकार के पुस्तकालय व्यक्तिगत या निजी पुस्तकालय के समान नहीं होते हैं, जो स्वतंत्रतापूर्वक चलाए जाते हैं ।

संस्थागत पुस्तकालय के पाठक न तो सीमित होते हैं और न इसके सीमित नियम ही होते हैं, अपितु इस प्रकार के पुस्तकालय तो विस्तृत नियमों के साथ अपने पाठकों की संख्या असीमित ही रखते हैं । इसलिए इन पुस्तकालयों में पुस्तकों की संख्या भी बहुत बड़ी या असीमित होती है । इसी तरह इस प्रकार के पुस्तकालयों की पुस्तकें बहुमूल्य और अवक्षय अर्थात् सस्ती और महँगी दोनों ही होती हैं । हम यह कह सकते हैं कि इस प्रकार के पुस्तकालयों की पुस्तकें महँगी होती हुई भी मध्यम श्रेणी की होती हैं ।

संस्थागत पुस्तकालयों की पुस्तकें साहित्य, संगीत, कला, दर्शन, धर्म, राजनीति, विज्ञान, समाज, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय आदि सभी स्तरों की अवश्य होती हैं । संस्थागत पुस्तकालयों की संख्या सभी प्रकार के पुस्तकालयों से अधिक होती है । इस दृष्टिकोण से संस्थागत पुस्तकालयों का महत्त्व सभी प्रकार के पुस्तकालयों से बढ़कर है ।

पुस्तकालयों का तीसरा प्रकार सार्वजनिक पुस्तकालयों का है । सार्वजनिक पुस्तकालयों की संख्या संस्थागत पुस्तकालयों की संख्या से बहुत कम होती है; क्योंकि इस प्रकार के पुस्तकालयों का उपयोग या सम्बन्ध केवल बौद्धिक और पुस्तक-प्रेमियों से ही उाधिक होता है । कहीं-कहीं तो सरकार के द्वारा और कहीं-कहीं सामाजिक संस्थाओं के द्वारा भी सार्वजनिक पुस्तकालयों का संचालन होता है ।

चाहे जो कुछ हो सरकार द्वारा ये पुस्तकालय मान्यता प्राप्त होते हैं । सरकार इन पुस्तकालयों की सहायता समय-समय पर किया करती है । अत: सार्वजनिक पुस्तकालयों का भविष्य व्यक्तिगत पुस्तकालयों के समान अंधकारमय नहीं होता है ।

पुस्तकालय का एक छोटा-सा प्रकार चलता-फिरता पुस्तकालय है । इस प्रकार के पुस्तकालयों का महत्त्व अवश्य है; क्योंकि समय के अभाव के कारण लोग इस प्रकार के पुस्तकालयों का अवश्य लाभ उठाते हैं । सुविधाजनक अर्थात् घर बैठे ही इन पुस्तकालयों का लाभ उठा पाने के कारण इनका महत्त्व और लोकप्रिय होना निश्चय ही सत्य है । सीमित संख्या होने के कारण यद्यपि इन पुस्तकालयों का प्रसार कम है, लेकिन महिलाओं के लिए ये अवश्य अधिक उपयोगी है ।

पुस्तकालय ज्ञान-विज्ञान की रहस्यमय जानकारी को प्रदान करने में अवश्य महत्त्वपूर्ण भूमिका को निभाते हैं । ये हमें सत्संगति प्रदान करते हैं । हमें अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाते हैं । इसलिए हमें पुस्तकालयों का अवश्य अधिक-से-अधिक उपयोग करना चाहिए ।

Answered by anamikachy078
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Answer: पुस्तकालय का अर्थ है- पुस्तक+आलय अर्थात पुस्तकें रखने का स्थान। पुस्तकालय मौन अध्ययन का स्थान है जहाँ हम बैठकर ज्ञानार्जन करते हैं।

पुस्तकालय भिन्न-भिन्न प्रकार के हो सकते हैं। कई विद्या-प्रेमी अपने उपयोग के लिए अपने घर पर ही पुस्तकालय की स्थापना कर लेते हैं। ऐसे पुस्तकालय 'व्यक्तिगत पुस्तकालय' कहलाते हैं। सार्वजनिक उपयोगिता की दृष्टि से इनका महत्त्व कम होता है।

दूसरे प्रकार के पुस्तकालय स्कूलों और कॉलेजों में होते हैं। इनमें बहुधा उन पुस्तकों का संग्रह होता है, जो पाठ्य-विषयों से संबंधित होती हैं। सार्वजनिक उपयोग में इस प्रकार के पुस्तकालय भी नहीं आते। इनका उपयोग छात्र और अध्यापक ही करते हैं। परन्तु ज्ञानार्जन और शिक्षा की पूर्णता में इनका सार्वजनिक महत्त्व है। इनके बिना विद्यालयों की कल्पना नहीं की जा सकती।

तीसरे प्रकार के पुस्तकालय 'राष्ट्रीय पुस्तकालय' कहलाते हैं। आर्थिक दृष्टि से संपन्न होने के कारण इन पुस्तकालयों में देश-विदेश में छपी भाषाओं और विषयों की पुस्तकों का विशाल संग्रह होता है। इनका उपयोग भी बड़े-बड़े विद्वानो द्वारा होता है। चौथे प्रकार के पुस्तकालय सार्वजनिक होते हैं। इनका संचालन सार्वजनिक संस्थाओं के द्वारा होता है।

 

पुस्तकालयों के अनेक लाभ हैं। सभी पुस्तकों को खरीदना हर किसी के लिए सम्भव नहीं है। इसके लिए लोग पुस्तकालय का सहारा लेते हैं। इन पुस्तकालयों से निर्धन व्यक्ति भी लाभ उठा सकता है। पुस्तकालय से हम अपनी रूचि के अनुसार विभिन्न पुस्तकें प्राप्त कर अपना ज्ञानार्जन कर सकते हैं।

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