Hindi, asked by shivam1459, 10 months ago

पीत्वा रस तु कटुके मधुर समान
माधुर्यमेव जन्येन्मधुमक्षिकासौ।
सन्तस्तथैव समसज्जनदुर्जनाना
श्रुत्वा वचः मधुरसूक्तरस सृजन्ति ।।
विहाय पौरुष यो हि देवमेवावलम्बते ।
प्रासादसिहवत् तस्य मूर्ध्नि तिष्ठन्ति वायसाः ।।७।।
पुष्पपत्रफलच्छायामूलवल्कलदारुभिः ।
धन्या महोरुहाः येषां विमुख यान्ति नार्थिनः ॥४॥
चिन्तनीया हि विपदाम् आदावेव प्रतिक्रियाः ।
न कूपखननं युक्त प्रदीप्ते वहिना गृहे |. please tell hindi anuvad of total four sloks.i will mark you brainlliest​

Answers

Answered by ReshavRaj29
17

Answer:

  1. जिस प्रकार मधुमखी मीठे अथवा कड़वे रस को एक समान पीकर मिठास ही उत्पन्न करती है उसी प्रकार संत लोग सज्जन व दुर्जन लोगों की बाते एक समान सुनकर सूक्ति रूप का सृजन करते है।।
  2. जो व्यक्ति निश्चय से पुरूषार्थ छोड़कर भाग्य का ही सहारा लेते है। महल के दवार पर बने हुए नकली शेर की तरह उनके सर पर कौऐ बैठते है।।
  3. फूल-पत्ते-फल-छाया-जड़-छाल और लकड़ियों से वृक्ष धनय होते है जिनसे मांगने वाले विमुख नही होते है।।
  4. निश्च्य से विपत्तियों का शुरुआत में ही इलाज सोचना चाहिए।आग से घर के जलने पर कुआँ खोदना उचित नही होता।।
Similar questions