पाठ-शब्दार्थ एवं सरलार्थ ||
उपरि निर्मितं चित्रं पश्यत। इदं चित्रं कस्याश्चित् पाठशालायाः वर्तते। इयं सामान्या पाठशाला नास्ति। इयमस्ति महाराष्ट्रस्य प्रथमा कन्यापाठशाला। एका शिक्षिका गृहात् पुस्तकानि आदाय चलति। मार्गे कश्चित् तस्याः उपरि धूलिं कश्चित् च प्रस्तरखण्डान् क्षिपति। परं सा स्वदृढनिश्चयात् न विचलति। स्वविद्यालये कन्याभिः सविनोदम् आलपन्ती सा अध्यापने संलग्ना भवति। तस्याः स्वकीयम् अध्ययनमपि सहैव प्रचलति। केयं महिला? अपि यूयमिमां महिलां जानीथ? इयमेव महाराष्ट्रस्य प्रथमा महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले नामधेया।
शब्दार्थ : निर्मितम्-बने हुए। कस्याश्चित् (कस्याः + चित्)-किसी (का)। आदाय-लेकर। धूलिम्-धूल (को)। कश्चित्-कोई। प्रस्तरखण्डान्-पत्थर के टुकड़ों को। स्वदृढनिश्चयातु-अपने मजबूत निश्चय से। सविनोदम्-हँसी मजाक के साथ। आलपन्ती-बात करती हुई। अध्यापने-शिक्षण कार्य में संलग्ना-लगी हुई। स्वकीयम्-अपना। सहैव ( सह+एव)-साथ ही। नामधेया-नामक (नाम वाली)। इयमेव (इय + एव)-यही (यह ही)।
सरलार्थ : ऊपर बने हुए चित्र को देखो। यह चित्र किसी विद्यालय का है। यह सामान्य विद्यालय नहीं है। यह महाराष्ट्र का कन्याओं का पहला विद्यालय है। एक अध्यापिका घर से पुस्तकें लेकर चलती है। रास्ते में कोई उसके ऊपर धूल (को) और कोई पत्थर के टुकड़ों को फेंकता है। परन्तु वह अपने मजबूत इरादे से नहीं हटती है। अपने विद्यालय में कन्याओं से हँसी-मजाक के साथ बातचीत करती हुई वह शिक्षण कार्य में लगी होती है। उसकी अपनी पढ़ाई भी साथ ही चल रही है। यह महिला (स्त्री) कौन है? क्या आप लोग इस महिला को जानते हैं? यही महाराष्ट्र की पहली महिला अध्यापिका सावित्री बाई फुले नाम वाली हैं।
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Explanation:
घटनाक्रमानुसारं लिखत-(घटनाक्रम के अनुसार लिखिए-)
(क) उपरितः अवकरं क्षेप्तुम् उद्यातां रोजलिन् बालाः प्रवोधयन्ति।
(ख) प्लास्टिकस्य विविधापक्षान् विचारयितुं पर्यावरणसंरक्षेणन पशूनेत्यादीन् रक्षितुं बालाः कृतनिश्चयाः भवन्ति।
(ग) गृहे प्रचण्डोष्मणा पीडितानि मित्राणि एकैकं कृत्वा गृहात् बहिरागच्छन्ति।
(घ) अन्ते बालाः जलविहारं कृत्वा प्रसीदन्ति।
(ङ) शाकफलानामावरणैः सह प्लास्टिकस्यूतमपि खादन्तीं धेनुं बालकाः कदलीफलानि भोजयन्ति।
(च) वृक्षाणां निरन्तरं कर्तनेन, ऊष्मावर्धनेन च दुःखिताः बालाः नदीतीरं गन्तुं प्रवृत्ताः भवन्ति।
(छ) बालैः सह रोजलिन् अपि मार्गे विकीर्णमवकरं यथास्थानं प्रक्षिपति।
(ज) मार्गे यत्र-तत्र विकीर्णमवकरं दृष्टवा पर्यावरण विषये चिन्तिताः वालाः पपरस्परं विचारयन्ति।
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