पृथक निर्वाचन-मंडल और आरक्षित चुनाव क्षेत्र के बीच क्या अंतर है? सवधान निर्माताओं ने पृथक निर्वाचन-मंडल को क्यों स्वीकार नहीं किया?
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पृथक निर्वाचन मंडल और आरक्षित चुनाव क्षेत्र में ये अंतर है कि पृथक निर्वाचन मंडल व्यवस्था में किसी समुदाय विशेष के प्रतिनिधि के चुनाव में केवल उसी समुदाय के व्यक्ति ही वोट डाल सकेंगे। अर्थात चुनाव प्रक्रिया में प्रत्याशी और मतदाता दोनों किसी समुदाय विशेष के होंगे।
आरक्षित चुनाव क्षेत्र व्यवस्था में ये प्रावधान किया गया कि क्षेत्र विशेष में वोट तो सभी समुदाय के लोग समान स्तर पर डाल सकेंगे लेकिन उस क्षेत्र का प्रत्याशी किसी समुदाय विशेष का होगा, जिसके लिये वो क्षेत्र आरक्षित किया गया हो। अर्थात इस व्यवस्था में किसी क्षेत्र को प्रत्याशी के तौर पर किसी समुदाय विशेष के लिये आरक्षित कर दिया गया। प्रारंभ में ये व्यवस्था 10 वर्ष के लिये लागू की गयी थी लेकिन आगे बढ़ाते-बढ़ाते ये व्यवस्था अभी तक चली आ रही है। फिलहाल लोकसभा की 543 सीटों में से 79 अनुसूचित जाति और 41 अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित हैं।
पृथक निर्वाचन मंडल को भारत के संविधान निर्माताओं ने स्वीकार नही किया क्योंकि देश में अनेक समुदाय ऐसे है जिनकी भले ही देश में कुल मिलाकर अच्छी संख्या हो लेकिन किसी क्षेत्र विशेष में उनकी संख्या इतनी नही होती थी कि वो किसी चुनाव को प्रभावित कर सके अर्थात उनकी संख्या इतनी नगण्य होती थी कि उन्हें प्रतिनिधित्व देना तर्कसंगत नही होता और उस क्षेत्र की बहुसंख्यक जनता के लिये न्यायसंगत नही होता।
Answer with Explanation:
पृथक निर्वाचन-मंडल और आरक्षित चुनाव क्षेत्र के बीच निम्न अंतर है :
पृथक निर्वाचन मंडल में एक चुनाव क्षेत्र से विभिन्न जातियों के प्रतिनिधि चुनाव में खड़े होते हैं तथा हर एक मतदाता अपनी जाति के प्रतिनिधि को ही चुनाव में वोट देता है।
भारत को स्वतंत्रता मिलने से पहले ब्रिटिश सरकार ने भारत में इस प्रणाली को लागू किया था।
जबकि आरक्षित चुनाव क्षेत्र के अंतर्गत पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए सीट आरक्षित होती है।अब एक तिहाई सीटें स्थानीय सरकारी संस्थानों में महिलाओं के लिए आरक्षित हैं
संविधान निर्माताओं ने पृथक निर्वाचन-मंडल को इसलिए स्वीकार नहीं किया क्योंकि यह सांप्रदायिक चुनाव प्रणाली है पृथक निर्वाचन मंडल प्रणाली समाज में सांप्रदायिकता को बढ़ाती है और इससे समाज की एकता में प्रभाव पड़ता है। पृथक चुनाव प्रणाली में मतदाताओं का नज़रिया होता है और मतदाता देश की भलाई के जगह पर अपने संप्रदाय के भलाई को ज्यादा महत्व देते हैं।
आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।
इस पाठ से संबंधित कुछ और प्रश्न :
निम्नलिखित में कौन-सी राज्य सभा और लोक सभा के सदस्यों के चुनाव की प्रणाली में समान है?
(क) 18 वर्ष से ज्यादा की उम्र का हर नागरिक मतदान करने के योग्य है।
(ख) विभिन्न प्रत्याशियों के बारे में मतदाता अपनी पसंद को वरीयता क्रम में रख सकता है।
(ग) प्रत्येक मत का समान मूल्य होता है।
(घ) विजयी उम्मीदवार को आधे से अधिक मत प्राप्त होने चाहिए।
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फर्स्ट पास्ट द पोस्ट प्रणाली में वही प्रत्याशी विजेता घोषित किया जाता है जो -
(क) सर्वाधिक संख्या में मत अर्जित करता है।
(ख) देश में सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले दल का सदस्य हो।
(ग) चुनाव क्षेत्र के अन्य उम्मीदवारों से ज्यादा मत हासिल करता है।
(घ) 50 प्रतिशत से अधिक मत हासिल करके प्रथम स्थान पर आता है।
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