pad priche of premchand mahaan kalakaar the
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प्रेमचंद' ने हिन्दी को पाला-पोसा,बड़ा किया और उसे एक संस्कार दिया। प्रेमचंद ने कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने एक पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। अपने बाद की एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य को आम आदमी और जमीन से जोड़ा। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा।
कथा सम्राट प्रेमचंद का कहना था कि 'साहित्यकार देशभक्ति और राजनीति के पीछे चलने वाली सच्चाई नहीं बल्कि उसके आगे मशाल दिखाती हुई चलने वाली सच्चाई है'। यह बात उनके साहित्य में उजागर भी हुई है। प्रेमचंद ने साहित्य को सच्चाई के धरातल पर उतारा। उन्होंने जीवन और कालखंड की सच्चाई को पन्ने पर उतारा।
वे सांप्रदायिकता,भ्रष्टाचार,जमींदारी,कर्जखोरी, गरीबी,उपनिवेशवाद पर आजीवन लिखते रहे। प्रेमचंद की ज्यादातर रचनाएं गरीबी और दैन्यता की कहानी कहती है। यह भी गलत नहीं है कि वह आम भारतीय के रचनाकार थे। उनकी रचनाओं में ऐसे नायक हुए,जिसे भारतीय समाज अछूत और घृणित समझता था।
उन्होंने सरल,सहज और आम बोल-चाल की भाषा का उपयोग किया और अपने प्रगतिशील विचारों को दृढ़ता से तर्क देते हुए समाज के सामने प्रस्तुत किया। 1936 में प्रगतिशील लेखक संघ के पहले सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने कहा कि लेखक स्वभाव से प्रगतिशील होता है और जो ऐसा नहीं है वह लेखक नहीं है। प्रेमचंद हिन्दी साहित्य के युग प्रवर्तक माने गए।
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