pani ka prithvi per janam per long essay
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जलकितना सुपरिचित नाम है पानी। जन्म से ही हमारा उससे नाता है। पैदा होते ही बच्चे को दाई पानी से नहलाती है। बचपन में सभी ने पानी में खूब मस्ती की है। सभी लोग उसे रोज काम में लाते हैं। बरसात में वह बूँदों का उपहार देकर धरती को हरी चुनरी की ओढ़नी ओढ़ाता है। उसका शृंगार करता है।
नदी, तालाबों तथा झरनों को जीवन देता है। शीत ऋतु में हरी घास के बिछौने, पत्तियों की कोरों और फूलों की पंखुड़ियों पर ओस कणों के रूप में उतर कर मन को आनन्दित करता है। बाढ़ तथा सुनामी बनकर आफत ढाता है तो प्यास बुझा कर समस्त जीवधारियों के जीवन की रक्षा करता है। वह जीवन का आधार है। वह, धरती के बहुत बड़े हिस्से पर काबिज है। उसके विभिन्न रूपों (द्रव, ठोस तथा भाप) से सभी बखूबी परिचित हैं।
वह सर्वत्र मौजूद है पर जब हम उसकी उम्र तथा उसके जन्म स्थान के बारे में जानने का प्रयास करते हैं तो वह उतना ही गैर, अबूझ और अपरिचित बन जाता है। पानी के जन्म के बारे में हमारी जानकारी बहुत सीमित है। उसकी जन्म की हकीकत अभी भी रहस्य के साये में है।
हम पानी के रासायानिक संगठन, उसके सूत्र तथा उसके बनने की रासायनिक प्रक्रिया से बखूबी परिचित हैं। हम जानते हैं कि वह ऑक्सीजन और हाइड्रोजन गैसों पर विद्युत क्रिया के संयोग से बनता है। रसायनशास्त्री उसे यौगिक कहते हैं।
स्कूली बच्चे तक जानते हैं कि नमक मिलाने से उसके जमाव तथा उबाल बिन्दु को घटाया या कम किया जा सकता है पर यदि उसे एवरेस्ट पर्वत की चोटी जहाँ वायुमण्डलीय दबाव कम है, पर उबाला जाएगा तो वह 75 डिग्री सेंटीग्रेड पर उबलने लगेगा किन्तु समुद्र की अधिकतम गहराई में, जहाँ दबाव अधिक है, उबाला जाएगा तो वह 650 डिग्री सेंटीग्रेड पर उबलेगा। हम उसके व्यवहार, उसके उपयोग और उसकी जीवनदायी क्षमता से बखूबी परिचित हैं।
पृथ्वी पर पानी का जन्म कैसे और क्यों हुआ, बहुत स्पष्ट नहीं है। भारतीय ऋषि-मुनियों ने पानी के जन्म के बारे में गहन चिन्तन किया है। उन्होंने पानी को उसके मौलिक रूप में नारायण माना है। वह पुरुषोत्तम (नर) से उत्पन्न हुआ है इसलिये उसे नार कहा जाता है। सृष्टि के पूर्व वह अर्थात नार (जल) ही भगवान का अयन (निवास) था। नारायण का अर्थ है भगवान का निवास स्थान। पानी में आवास होने के कारण भगवान को नारायण कहते हैं। पानी अविनाशी, अनादि और अनन्त है। उसके बारे में कहा गया है-
आपो नारा इति प्रोक्ता, नारो वै नर सूनवः।
अयनं तस्य ताः पूर्व, ततो नारायणः स्मृतः ।।
अर्थात ‘आपः’ (जल के विभिन्न प्रकार) को ‘नाराः’ कहा जाता है क्योंकि वे ‘नर’ से उत्पन्न हुए हैं। चूँकि ‘नर’ का मूल निवास ‘जल’ में है। इसीलिये जल में निवास करने वाले (जल में व्याप्त) ‘नर’ को ‘नारायण’ कहा जाता है।
भारतीय दर्शन ने जल को शक्ति या पदार्थ माना है। भारतीय दर्शन मानता है कि पानी अजर अमर है। वह सृष्टि के पहले मौजूद था, वह मौजूदा काल में मौजूद है और भविष्य में सृष्टि का विनाश होने के बाद भी मौजूद रहेगा।
भारतीय पुरातन जल वैज्ञानिकों के अनुसार ‘जल’ आकाश, वायु और ‘तेजस’ के पारस्परिक-क्षोभ के कारण उत्पन्न हुआ है। भारतीय मनीषियों के अनुसार आकाश, पंचमहाभूतों का जनक है। आकाश के कारण ही शब्द, नाद या ध्वनि सुनाई देती है। वे कहते हैं कि यदि आकाश का अस्तित्व नहीं होता तो किसी भी प्रकार का नाद (ध्वनि) न तो उत्पन्न होता और न सुनाई देता।
वायु के सम्बन्ध में भारतीय मनीषियों ने कहा है कि सृष्टि के पहले एकमात्र परब्रह्म था। वह ज्योतिपुंज था। उसकी प्रभा करोड़ों सूर्यों के समान थी। वही ज्योतिपुंज विश्व के उद्भव का कारण है। वायु उक्त ज्योतिपुंज का पुत्र है। लोक चिन्तकों ने उसे ही वायुमण्डल कहा है।
लोकचिन्तकों के अनुसार वायु की उत्पत्ति आदिसृष्टि के समय से है। ‘तेजस’ हकीकत में अग्नि या विद्युत या तड़ित का पर्यायवाची है। इस प्रकार आकाश, वायु और अग्नि के पारस्परिक क्षोभ (विस्फोट) से जल की उत्पत्ति हुई है। आकाश, वायु, अग्नि तथा जल के क्षोभ से पृथ्वी का जन्म हुआ है। उल्लेखनीय है कि जल के जन्म की पुरातन भारतीय सोच को समझना सरल नहीं है क्योंकि वह आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक शैली में लिखी गई है। उसे समझने के लिये अत्यन्त गम्भीर प्रयासों की जरूरत है।
पानी की उत्पत्ति का उल्लेख कुरान में भी मिलता है। कुरान के अनुसार, अल्लाह ने 6 दिनों में स्वर्ग तथा पृथ्वी का निर्माण किया। कुरान के अनुसार, अल्लाह का सिंहासन पानी पर स्थित है। अल्लाह ने पानी से सभी जीवित प्राणियों तथा पशुओं का निर्माण किया। बाईबिल के अनुसार ईश्वर ने सबसे पहले स्वर्ग और पृथ्वी को बनाया। उन्होंने सितारों का भी निर्माण किया।
प्रारम्भ में, पृथ्वी आकारहीन तथा खाली थी। उसकी सतह पर गहन अन्धकार था। पानी पर ईश्वर की सत्ता थी। ईश्वर ने प्रकाश और आकाश को बनाया। उन्होंने महासागर और धरती को अलग-अलग किया। धरती को पानी, वनस्पतियाँ तथा फलदार वृक्ष नवाजे और उनके शरीरों को जल-बहुल बनाया। उल्लेखनीय है कि बाईबिल के उल्लेखों से दो निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।
पहले निष्कर्ष के अनुसार, पानी, सृष्टि के प्रारम्भ से है। प्रारम्भ में, वह पूरी पृथ्वी पर मौजूद था। महाद्वीप बाद में अस्तित्व में आये। दूसरे निष्कर्ष के अनुसार, पानी, समस्त जीवधारियों के योगक्षेम का आधार है। बाईबिल के अनुसार, ईश्वर ने पानी का निर्माण किया है पर बाईबिल, जीवधारियों की उत्पत्ति के लिये, पानी की भूमिका को प्रतिपादित नहीं करती।
राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, रुड़की द्वारा प्रकाशित पत्रिका ‘जल चेतना’ के खण्ड तीन, अंक 1, जनवरी 2014 में प्रकाशित लेख से पता चलता है कि आकाश गंगा के अन्तरतारकीय मेघों में पानी मौजूद है। अन्य आकाश गंगाओं में भी पानी मौजूद हो सकता है क्योंकि ब्रह्माण्ड में ऑक्सीजन और हाइड्रोजन की प्रचुर मात्रा उपलब्ध है।