परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः परोपकाराय वहन्ति नद्यः।
परोपकाराय दुहन्ति गावः, परोपकाराय सतां विभूतयः।।1।।
श्रोतं श्रुतेनैव न कुण्डलेन, दानेन पाणिर्न तु कङ्कणेन।
विभाति काय: करुणापराणां, परोपकारेण न तु चन्दनेन ।।2।।
परोपकार-शून्यस्य धिङ् मनुष्यस्य जीवितम्।
जीवन्तु पशवः येषां चर्माप्युपकरिष्यति ।।3।।
भवन्ति नम्रास्तरव: फलोद्गमै: नवाम्बुभि:रिविलम्बिना
अनुद्धता सत्पुरुषाः समृद्धिभिः स्वभाव एवैष परोपकारिणाम् ।।4।।
यदा यदा हि पुरुष: कल्याणे कुरुते मनः।
तथा तथास्य सर्वार्थाः सिध्यन्ते नात्र संशयः ।।5।।
अष्टादशपुराणेषु, व्यासस्य वचनद्वयम्।
परोपकारः पुण्याय, पापाय परपीडनम् ।।6।।
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Explanation:
सरों के लाभ के लिए गाय का दूध, दूसरों के लाभ के लिए सदाचारियों की महिमा।
सुनने से श्रवण होता है, झुमके से नहीं, देने से हाथ, कंगन से नहीं।
चंदन से नहीं, दूसरों की मदद करने से शरीर दूसरों के प्रति करुणा से चमकता है।
धिक्कार है परोपकार से रहित मनुष्य के जीवन पर।
उन जानवरों को रहने दो जिनकी खाल का इस्तेमाल किया जाएगा।
नम्र पेड़ बिना देर किए फलों और ताजे पानी से आच्छादित हो जाते हैं
सदाचारी अपनी समृद्धि से अभिभूत नहीं होते हैं दूसरों की मदद करने वालों का यह स्वभाव होता है।
जब भी मनुष्य कल्याण के लिए अपना मन लगाता है
और इसलिए उसके सभी उद्देश्य निस्संदेह पूरे होते हैं।
अठारह पुराणों में व्यास के दो शब्द।
दूसरों की मदद करना पुण्य के लिए है, और दूसरों का उत्पीड़न पाप के लिए है।
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