Hindi, asked by anvesha3856, 1 year ago

paragraph on friendship in hindi

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Answered by Ashh123
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मित्रता सगा न होते हुए भी सगे जैसा संबंध होता है जो किसी भी उम्र के व्यक्ति के साथ किसी को भी हो सकता है साथ ही ये किसी अन्य के अलावा अपनों में भी गहरी मित्रता का संबंध संभव है। दोस्ती के इसी महत्व और गहराई को समझाने के लिये स्कूल जाने वाले छोटे बच्चों और विद्यार्थियों के लिये हम यहाँ पर कुछ सीधे और सरल भाषा के साथ ही विभिन्न शब्द सीमाओं में निबंध उपलब्ध करा रहें हैं। इसका उपयोग विद्यार्थी किसी भी स्कूली परीक्षाओं या प्रतियोगिताओं में कर सकते हैं।दुनिया में कहीं भी रह रहे दो या दो से अधिक लोगों के बीच दोस्ती एक भरोसेमंद और निष्ठावान रिश्ता है। हम अपनी पूरी जिन्दगी अकेले नहीं जी सकते और खुशी से जीने के लिये किसी भरोसेमंद साथी की ज़रुरत है जिसे दोस्त कहते हैं। दोस्ती एक अन्तरंग रिश्ता होता है जिसपर हमेशा के लिये भरोसा किया जा सकता है। ये उम्र, लिंग और व्यक्ति के पद पर सीमित नहीं होता अर्थात् मित्रता किसी भी आयु वर्ग के पुरुष की पुरुष से, महिला की महिला से या इंसान की जानवर के बीच हो सकती है।

हालांकि, आमतौर पर ये एक आयु वर्ग के व्यक्तियों के बीच में बिना किसी लिंग और पद के भेदभाव के संभव है। मित्रता एक या अलग जुनून, भावना या विचार के व्यक्तियों के साथ विकसित हो सकती है।


Ashh123: pls mark as brainliest
Answered by himanshusingh52
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मित्र के बिना जीवन अधूरा होता है । मित्र जीवन के रोगों की औषधि होती है, इसलिए मित्रता का बहुत महत्व है । हर प्राणी घर से बाहर मित्र की तलाश करता है ।

मित्र जीवन का वह साथी है जो हर बुराई से हमें बचाता है । हमें भलाई की ओर बढ़ाने के लिए साधन जुटाता है । पतन से बचाकर उत्थान के पथ पर लाता है, वह मित्र है । धर्म ग्रंथों में ऐसे ही मित्रों के गुण गाये गये है, अर्जुन-कृष्ण की मित्रता, श्रीकृष्ण-सुदामा कि मित्रता । श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता एक पवन सम्बन्ध की सूचक है ।

श्रीकृष्ण ने आपत्ति में पड़े अर्जुन की हर समय सहायता की । श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता लोक प्रसिद्ध है । सुदामा गरीब ब्राह्मण था और प्रभु श्रीकृष्ण राजा थे तो भी श्रीकृष्ण जी ने मित्रता का फर्ज निभाया और सुदामा की मदद की । जीवन का सहारा, दुःख का साथी मित्र बनाते समय लोग बुद्धिमानी से काम नहीं लेते हैं ।

कई बार छली, कपटी आदमी मित्रता की आड़ में अपना मतलब निकालते हैं । ऐसे लोगों से बचना चाहिए । मित्रता के सच्चे भाव को समझना चाहिए । सच्चा मित्र हर सुख-दुःख में साथ देता है । स्वार्थी मित्र संकट के समय साथ छोड़ देते हैं । अतः मित्रता करने में सावधानी बरतनी चाहिए । तुलसीदास जी ने कहा है-
जो मित्र दुःख होई न दुखारी,
तिनहि विलोकत पातक भारी 


anvesha3856: Nice paragraph
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