Hindi, asked by Dishantmeena205, 1 year ago

Pashu pakshi ka mahthav per nibandh in hindi

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Answered by apurv5
51
चिकित्सा या उपचार शब्द सुनते ही हमारे मन में नर्स, हॉस्पिटल, कैप्सूल और इंजेक्शन जैसी चीजों की छवि उभरती है। इन सबका चिकित्सा से गहरा संबंध है, लेकिन चिकित्सा या उपचार में और भी कई वस्तुओं और स्थितियों का महत्वपूर्ण योगदान होता है, जिनकी हम आमतौर पर उपेक्षा करने लगे हैं। दुनिया में न जाने कितनी अजीबोगरीब चीजों और स्थितियों से उपचार में मदद ली जाती है। लोग दुख-दर्द से निजात पाने के लिए क्या-क्या नहीं करते। मंगोलिया के लोग हाई ब्लडप्रेशर से मुक्ति पाने के लिए बिल्ली को धीरे-धीरे सहलाते हैं। असल में बिल्ली को सहलाने का अर्थ है बिल्ली का साहचर्य प्राप्त होना। यह साहचर्य रोगी को सुकून देता है और सुकून उपचार का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। बिल्ली ही नहीं, सभी पालतू पशु-पक्षी अपने पालने वाले को आनंद की अनुभूति कराते हैं।


आज विकसित देशों में तथा बडे़-बडे़ शहरों में लोग अत्यंत व्यस्त हो गए हैं। ऐसे में परिवारों में अनेक समस्याएं पैदा हो गई हैं। लोगों के पास एक-दूसरे के लिए समय नहीं है। सब अपने-अपने काम में लगे रहते हैं। ऐसे में जो लोग अकेले पड़ जाते हैं, जिन्हें किसी व्यक्ति का साहचर्य उपलब्ध नहीं है, उनके लिए पालतू पशुओं (पेट) से अच्छा कोई विकल्प नहीं। अकेलापन व्यक्ति को निराशा और तनाव से भर देता है, जिससे बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। जो लोग अकेले होते हैं, उनका एकाकीपन दूर कर उन्हें रोगों से बचाने के लिए पालतू पशुओं का साथ एक बहुत ही बढि़या और कारगर उपचार है। 
जिन दंपतियों के बच्चे नहीं होते वे बच्चे की कमी अपने 'पेट' से पूरी कर सकते हैं। एक नन्हे जानवर का पालना भी कम रोमांचक नहीं होता। धीरे-धीरे यह रोमांच प्यार और वात्सल्य में परिवर्तित होकर आनंद प्रदान करने लगता है, जो पालने वाले के तनाव के स्तर को कम करके उसे इम्युनिटी (रोगावरोधक) और रोग उपचारक क्षमता प्रदान करने में सक्षम होता है। बुढ़ापे में भी पालतू जानवरों की मदद से एकाकीपन दूर किया जा सकता है और साथ ही अपेक्षाकृत अधिक सक्रिय जीवन व्यतीत करना भी संभव होता है। जितनी अधिक सक्रियता, उतना ही रोगों और बुढ़ापे की परेशानी से मुक्ति। 

पालतू जानवर मनुष्य या बच्चों की अपेक्षा कई मायनों में अच्छे मित्र या सहायक सिद्ध होते हैं, क्योंकि वे प्रतिवाद नहीं करते। इसके कारण मनुष्य अधिकाधिक शांति का अनुभव करता है। क्रोध और उत्तेजना से बचा रहता है। इसका यह अर्थ नहीं कि मनुष्य को अपने प्रियजनों के साथ से संतोष और सुकून नहीं मिलता। लेकिन पालतू जानवरों या पेट्स से मनुष्य का रिश्ता किसी भी तरह कम महत्वपूर्ण नहीं है। भरा-पूरा घर परिवार है तो भी पालतू जानवरों का महत्व अपने स्थान पर है। मानवीय संबंध कही न कहीं स्वार्थों से जुड़े होते हैं। लेकिन मनुष्य और जीव-जंतुओं का संबंध बिना किसी शर्त और बिना स्वार्थ के होता है। यह संबंध मनुष्य में अच्छे गुणों का विकास करने में भी सक्षम है। मनुष्य जितना अधिक अच्छे गुणों से युक्त होगा, जितना अधिक सकारात्मक भावों से ओत-प्रोत होगा, उतना ही अधिक स्वस्थ और रोगमुक्त होगा।

पशु-पक्षियों का साहचर्य प्राप्त करना हमारी सुदीर्घ परंपरा का अटूट हिस्सा है। इसीलिए ऐसे सान्निध्य को धर्म से भी जोड़ा गया है। कुछ लोग सुबह-सुबह पक्षियों को दाना चुगाने जाते हैं। यह कार्य पक्षियों को दाना चुगाने के बहाने उनका साहचर्य प्राप्त करने का प्रयास है। पक्षी अत्यंत निकट आ जाते हैं और हथेली पर रखे दाने भी उठा लेते हैं। ये आनंददायक क्षण आरोग्य प्रदान करने वाले होते हैं। कई लोग चींटियों को आटा डालते हैं। मछलियों को भोजन खिलाते हैं। मंगलवार को बंदरों को फल, चने या चूरमा खिलाने जाते हैं। शनिवार को काले कुत्ते को तेल से चुपड़ी रोटी खिलाते हैं। कई घरों में रोज सुबह गाय और कुत्ते की रोटी सबसे पहले निकाली जाती है। श्राद्ध के दिनों में ही सही, ब्राह्मणों के साथ-साथ कौवों को भी खीर-पूड़ी खिलाई जाती है। यह स्थिति जानवरों के प्रति हमारे प्रेम और आकर्षण को ही स्पष्ट करती है। जहाँ प्रेम है, वहीं आनंद है और आनंद के क्षण सदा उपचारक होते हैं। 


Dishantmeena205: thnx
Mamata1111: for which reason
Dishantmeena205: i am not saying to u i am saying to Apurv5 because he gave me the answer of this question
Answered by prashika642018
10

चिकित्सा या उपचार शब्द सुनते ही हमारे मन में नर्स, हॉस्पिटल, कैप्सूल और इंजेक्शन जैसी चीजों की छवि उभरती है। इन सबका चिकित्सा से गहरा संबंध है, लेकिन चिकित्सा या उपचार में और भी कई वस्तुओं और स्थितियों का महत्वपूर्ण योगदान होता है, जिनकी हम आमतौर पर उपेक्षा करने लगे हैं। दुनिया में न जाने कितनी अजीबोगरीब चीजों और स्थितियों से उपचार में मदद ली जाती है। लोग दुख-दर्द से निजात पाने के लिए क्या-क्या नहीं करते। मंगोलिया के लोग हाई ब्लडप्रेशर से मुक्ति पाने के लिए बिल्ली को धीरे-धीरे सहलाते हैं। असल में बिल्ली को सहलाने का अर्थ है बिल्ली का साहचर्य प्राप्त होना। यह साहचर्य रोगी को सुकून देता है और सुकून उपचार का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। बिल्ली ही नहीं, सभी पालतू पशु-पक्षी अपने पालने वाले को आनंद की अनुभूति कराते हैं।

आज विकसित देशों में तथा बडे़-बडे़ शहरों में लोग अत्यंत व्यस्त हो गए हैं। ऐसे में परिवारों में अनेक समस्याएं पैदा हो गई हैं। लोगों के पास एक-दूसरे के लिए समय नहीं है। सब अपने-अपने काम में लगे रहते हैं। ऐसे में जो लोग अकेले पड़ जाते हैं, जिन्हें किसी व्यक्ति का साहचर्य उपलब्ध नहीं है, उनके लिए पालतू पशुओं (पेट) से अच्छा कोई विकल्प नहीं। अकेलापन व्यक्ति को निराशा और तनाव से भर देता है, जिससे बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। जो लोग अकेले होते हैं, उनका एकाकीपन दूर कर उन्हें रोगों से बचाने के लिए पालतू पशुओं का साथ एक बहुत ही बढि़या और कारगर उपचार है। 

जिन दंपतियों के बच्चे नहीं होते वे बच्चे की कमी अपने 'पेट' से पूरी कर सकते हैं। एक नन्हे जानवर का पालना भी कम रोमांचक नहीं होता। धीरे-धीरे यह रोमांच प्यार और वात्सल्य में परिवर्तित होकर आनंद प्रदान करने लगता है, जो पालने वाले के तनाव के स्तर को कम करके उसे इम्युनिटी (रोगावरोधक) और रोग उपचारक क्षमता प्रदान करने में सक्षम होता है। बुढ़ापे में भी पालतू जानवरों की मदद से एकाकीपन दूर किया जा सकता है और साथ ही अपेक्षाकृत अधिक सक्रिय जीवन व्यतीत करना भी संभव होता है। जितनी अधिक सक्रियता, उतना ही रोगों और बुढ़ापे की परेशानी से मुक्ति। 

पालतू जानवर मनुष्य या बच्चों की अपेक्षा कई मायनों में अच्छे मित्र या सहायक सिद्ध होते हैं, क्योंकि वे प्रतिवाद नहीं करते। इसके कारण मनुष्य अधिकाधिक शांति का अनुभव करता है। क्रोध और उत्तेजना से बचा रहता है। इसका यह अर्थ नहीं कि मनुष्य को अपने प्रियजनों के साथ से संतोष और सुकून नहीं मिलता। लेकिन पालतू जानवरों या पेट्स से मनुष्य का रिश्ता किसी भी तरह कम महत्वपूर्ण नहीं है। भरा-पूरा घर परिवार है तो भी पालतू जानवरों का महत्व अपने स्थान पर है। मानवीय संबंध कही न कहीं स्वार्थों से जुड़े होते हैं। लेकिन मनुष्य और जीव-जंतुओं का संबंध बिना किसी शर्त और बिना स्वार्थ के होता है। यह संबंध मनुष्य में अच्छे गुणों का विकास करने में भी सक्षम है। मनुष्य जितना अधिक अच्छे गुणों से युक्त होगा, जितना अधिक सकारात्मक भावों से ओत-प्रोत होगा, उतना ही अधिक स्वस्थ और रोगमुक्त होगा।

पशु-पक्षियों का साहचर्य प्राप्त करना हमारी सुदीर्घ परंपरा का अटूट हिस्सा है। इसीलिए ऐसे सान्निध्य को धर्म से भी जोड़ा गया है। कुछ लोग सुबह-सुबह पक्षियों को दाना चुगाने जाते हैं। यह कार्य पक्षियों को दाना चुगाने के बहाने उनका साहचर्य प्राप्त करने का प्रयास है। पक्षी अत्यंत निकट आ जाते हैं और हथेली पर रखे दाने भी उठा लेते हैं। ये आनंददायक क्षण आरोग्य प्रदान करने वाले होते हैं। कई लोग चींटियों को आटा डालते हैं। मछलियों को भोजन खिलाते हैं। मंगलवार को बंदरों को फल, चने या चूरमा खिलाने जाते हैं। शनिवार को काले कुत्ते को तेल से चुपड़ी रोटी खिलाते हैं। कई घरों में रोज सुबह गाय और कुत्ते की रोटी सबसे पहले निकाली जाती है। श्राद्ध के दिनों में ही सही, ब्राह्मणों के साथ-साथ कौवों को भी खीर-पूड़ी खिलाई जाती है। यह स्थिति जानवरों के प्रति हमारे प्रेम और आकर्षण को ही स्पष्ट करती है। जहाँ प्रेम है, वहीं आनंद है और आनंद के क्षण सदा उपचारक होते

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