पतंग का चित्र उतारकर दो वाक्य लिखिए ?
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संक्रांति और पतंग का एक रिश्ता है। जनवरी मध्य की गुनगुनी धूप हो, हाथ में तिल-गुड़ हो और आप खुले में दृष्टि ऊपर की ओर उठाई तो पूरा आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से भरा दिखेगा। हर पतंग एक डोर के सहारे अठखेलियां करती हुई। मानो उत्तरायण होते सूर्य नारायण की अगवानी करने नन्ही सी पतंग आकाश के द्वार पर जा पहुंची हो। हजारों रंगों की पतंगें सूर्य की आरती उतारने को तैयार। धरती पर खड़े हम उत्साह से थामे रहते हैं उस नाजुक सी पतंग की डोर। खुशी, उम्मीद और धैर्य के सहारे।
पतंग। दुनिया का सबसे सस्ता और अनूठा खिलौना। नाम सुनते ही मन हल्का सा हो जाता है, कहीं उड़ने को बेताब भी। पतंग चटख रंग की नाजुक सी, पतले से कागज से बनी होती है। जिसे बांस की दो पतली खपच्चियां साधे रखती हैं और तैयार करती हैं पतली सी डोर के सहारे ऊंचे अनंत आकाश में उड़ने के लिए।
क्या पतंग सिर्फ एक शौक या खेल भर मात्र है ? या जीवन का सार छिपा है इस नाजुक सी पतंग में ? आइए, एक नई नजर से देखें पतंग को -
आसमां छूने की तमन्ना-
गौर करें तो हमारा जीवन भी पतंग की मानिंद है। सुंदर, हल्का और उम्मीदों से भरा। हर व्यक्ति पतंग की भांति उड़ना चाहता है। अपनी इच्छाओं की डोर के सहारे। भीतर की क्षमता की उडंची देकर ऊंचे आसमान में जाना चाहता है। उम्र के हर पड़ाव पर इच्छाएं जन्म लेती हैं। हर प्रयास उन्हें पूरा होते देखना चाहता है। एक सपना सदा साथ रहता है, आसमान की पतंग सा। जो हर स्थिति में सफलता की आशा करता है।