Hindi, asked by prabhawithashok, 4 months ago

please give me dohe on topic "vartaman yug mein mahilaaoo ka yoogdaan"​

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Answered by sharmapramod2405
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Explanation:

रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय टूटे से फिर ना जुड़े जुड़े गांठ पड़ जाए।

Answered by Anonymous
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Answer:

आम बोलचाल की भाषा में ‘लेडिज फर्स्ट’ एक ऐसा कथन है, जो नारी के लिए सम्मान स्वरूप है। इतिहास साक्षी है, सिन्धुघाटी की सभ्यता हो या पौराणिंक कथाएं हर जगह नारी को श्रेष्ठ कहा गया है।

“यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमन्ते तत्र देवता” वाले भारत देश में आज नारी ने अपनी योग्यता के आधार पर अपनी श्रेष्ठता का परिचय हर क्षेत्र में अंकित किया है। आधुनिक तकनिकों को अपनाते हुए जमीं से आसमान तक का सफर कुशलता से पूरा करने में सलंग्न है। फिर भी मन में ये सवाल उठता है कि क्या वाकई नारी को ‘लेडीज फर्स्ट’ का सम्मान यर्थात में चरितार्थ है या महज औपचारिकता है। अक्सर उन्हे भ्रूणहत्या और दहेज जैसी विषाक्त मानसिकता का शिकार होना पङता है। नारी की बढती प्रगति को भी यदा-कदा पुरूष के खोखले अंह का कोप-भाजन बनना पङता है।

आज की नारी शिक्षित और आत्मनिर्भर है। प्रेमचन्द युग में नारी के प्रति नई चेतना का उदय हुआ। अनेक शताब्दियों के पश्चात राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त ने नारी का अमुल्य महत्व पहचाना और प्रसाद जी ने उसे मातृशक्ति के आसन पर आसीन किया जो उसका प्राकृतिक अधिकार था। आजादी के बाद से नारी के हित में कई कानून बनाये गये। नारी को लाभान्वित करने के लिए नित नई योजनाओं का आगाज भी हो रहा है। बजट 2013-14 में तो महिलाओं के लिए ऐसे बैंक की नीव रखी गई जहाँ सभी कार्यकर्ता महिलाएं हैं। उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कठोर से कठोर कानून भी बनाये गये हैं। इसके बावजूद समाज के कुछ हिस्से को दंड का भी खौफ नही है और नारी की पहचान को कुंठित मानसिकता का ग्रहंण लग जाता है। “नारी तुम श्रद्धा हो” वाले देश में उसका अस्तित्व तार-तार हो जाता है।

आधुनिकता की दुहाई देने वाली व्यवस्था में फिल्म हो या प्रचार उसे केवल उपभोग की वस्तु बना दिया गया है। लेडीज फर्स्ट जैसा आदर सूचक शब्द वास्तविकता में तभी सत्य सिद्ध होगा जब सब अपनी सोच को सकारात्मक बनाएंगे। आधुनिकता की इस अंधी दौङ में नारी को भी अबला नही सबला बनकर इतना सशक्त बनना है कि बाजारवाद का खुलापन उसका उपयोग न कर सके। नारी को भी अपनी शालीनता की रक्षा स्वयं करनी चाहिए तभी समाज में नारी की गरिमा को सम्पूर्णता मिलेगी और स्वामी विवेकानंद जी के विचार साकार होंगे।

विवेकानंद जी ने कहा था कि- “जब तक स्त्रियों की दशा सुधारी नही जायेगी तब तक संसार में समृद्धी की कोई संभावना नही है। पंक्षी एक पंख से कभी नही उङ पाता।”

इस उम्मीद के साथ कलम को विराम देते हैं कि, आने वाला पल नारी के लिए निर्भय और स्वछन्द वातावरण का निर्माण करेगा, जहाँ आधुनिकाता के परिवेश में वैचारिक समानता होगी। नारी के प्रति सोच में सम्मान होगा और सुमित्रानन्दन पंत की पंक्तियाँ साकार होंगी—

मुक्त करो नारी को मानव, चिर वन्दिनी नारी को।

युग-युग की निर्मम कारा से, जननी सखि प्यारी को।।

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