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कवि ने अत्यंत सुंदर पंकितयाँ लिखीं हैं। फूल का पौधा कभी किसे के साथ कोई भेदभाव नहीं करता। जो भी फूल पाने की इच्छा से उसके समीप जाता है, वह उसे पुष्प दे देता है और बदले में उससे कुछ नहीं माँगता। “पौधे” का अर्थ “ प्रकृति” भी हो सकता है। कवि व्यंग्य करते हुए कहता है कि जब प्रकृति किसी में कोई भेदभाव नहीं करती। कितना कुछ देने के बाद भी स्वयं के लिए कुछ नहीं माँगती, तो मनुष्य क्यों आपस में भदे भाव करते हैं ? क्यों वे सदैव अपने स्वार्थ को सिद्ध करने में लगे रहते हैं?
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