please tell me this question
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Hey dear , how are you...... Here is your answer......!!
धूप-छाँव, रात-दिन की तरह जीवन के हर कार्य के दो पहलू हैं । इसी ज्ञान-विज्ञान के भी दो पहलू स्पष्ट देखे और माने जा सकते हैं । आज हम जिस प्रकार का जीवन जी रहे हैं, उसमें कदम – कदम पर विज्ञान के अच्छे बुरे वरदान या अभिशाप वाले दोनों पहलुओं को दर्शन होते रहते हैं ।
हम जिस बस पर यात्रा करते हैं, वह ठीक-ठाक समय पर हमें, हमारे लक्ष्य तक पहूँचा देती है, यह विज्ञान का वरदान नहीं तो और क्या है ? लेकिन बस से निकलने वाला धुआँ पर्यावरण को दूषित कर वायुमण्डल को घोर प्रदूषित बना रहा है । क्या कहेंगे इसे ? विज्ञान का अभिशाप ही न ।
वरदान के रूप में अन्धेरी रात को दिन के उजाले में बदल देने वाली बिजली जब अचानक किसी बेचारे को छूकर उसके तन का रक्त चूस कर उसे निर्जीव कर देती है, तब वह डायन सरीखी एक भयानक अभिशाप हो तो लगाने लगती है । स्पष्ट है कि अच्छाई के साथ लगे बुराइ के पुँछल्लों की तरह विज्ञान के वरदान के साथ अभिशाप का पुछल्ला भी अवश्य लगा हुआ है ।
सत्य तो यह है कि विज्ञान की खोजों और आविष्कारों की प्रक्रिया वास्तव में मानव की भलाई के लिए ही आरम्भ हुई थी । आरम्भ से लेकर आज तक विज्ञान ने मानव-जाति को बहुत कुछ दिया है कि उसके जीवन क्रम में पूरी तरह बदलाव आ गया है ।
विज्ञान की सहायता से आज का मानव धरती तो क्या जल, वायुमण्डल, अन्तरिक्ष और अन्य ग्रहों तक का स्वतंत्र विचरण कर रहा है । वह घर पर बैठकर कहीं भी बातचीत कर सकता है । कहीं के भी दर्शन कर सकता है यहाँ तक कि खान-पान, रहन-सहन, पहनना- ओढ़ना तक वैज्ञानिक हो गया है । विज्ञान की सहायता से वह तन का रक्त जमा देने वाली ठण्ड और झुलसा देने वाली गर्मी में रह सकता है । इस सबको वरदान ही तो कहा जाएगा आधुनिक विज्ञान का ।
दूसरी तरफ उनकी बनाई सभी वरदानी वस्तुएँ क्षण भर में प्राण भी ले सकती हैं । उनके अतिरिक्त आज जो भयानकतम मारक शस्त्रास्त्र बन गए हैं, जैविक और रासायनिक शस्त्रों का निर्माण किया जा रहा है, युद्ध की जो नई प्रणालियाँ विकसित की जा रही हैं, उनके द्वारा कुछ ही क्षणों में धरती पर से मनुष्यता क्या सारी वनस्पतियों, नदियों, पहाड़ी तक का नाम मिटाया जा सकता है ।
इन विवेचन से स्पष्ट है कि, अपनी खोजों से वरदान रूप में मानव को विज्ञान जितना कुछ दे रहा, उससे कहीं अधिक तेजी से अभिशाप बनकर सर्वस्व ले भी सकता है । सो विज्ञान वरदान तो है, उससे कहीं बड़ा अभिशाप भी हैं, इसमें तनिक संदेह नहीं ।
Regards
Riyanshu.....!!☺
धूप-छाँव, रात-दिन की तरह जीवन के हर कार्य के दो पहलू हैं । इसी ज्ञान-विज्ञान के भी दो पहलू स्पष्ट देखे और माने जा सकते हैं । आज हम जिस प्रकार का जीवन जी रहे हैं, उसमें कदम – कदम पर विज्ञान के अच्छे बुरे वरदान या अभिशाप वाले दोनों पहलुओं को दर्शन होते रहते हैं ।
हम जिस बस पर यात्रा करते हैं, वह ठीक-ठाक समय पर हमें, हमारे लक्ष्य तक पहूँचा देती है, यह विज्ञान का वरदान नहीं तो और क्या है ? लेकिन बस से निकलने वाला धुआँ पर्यावरण को दूषित कर वायुमण्डल को घोर प्रदूषित बना रहा है । क्या कहेंगे इसे ? विज्ञान का अभिशाप ही न ।
वरदान के रूप में अन्धेरी रात को दिन के उजाले में बदल देने वाली बिजली जब अचानक किसी बेचारे को छूकर उसके तन का रक्त चूस कर उसे निर्जीव कर देती है, तब वह डायन सरीखी एक भयानक अभिशाप हो तो लगाने लगती है । स्पष्ट है कि अच्छाई के साथ लगे बुराइ के पुँछल्लों की तरह विज्ञान के वरदान के साथ अभिशाप का पुछल्ला भी अवश्य लगा हुआ है ।
सत्य तो यह है कि विज्ञान की खोजों और आविष्कारों की प्रक्रिया वास्तव में मानव की भलाई के लिए ही आरम्भ हुई थी । आरम्भ से लेकर आज तक विज्ञान ने मानव-जाति को बहुत कुछ दिया है कि उसके जीवन क्रम में पूरी तरह बदलाव आ गया है ।
विज्ञान की सहायता से आज का मानव धरती तो क्या जल, वायुमण्डल, अन्तरिक्ष और अन्य ग्रहों तक का स्वतंत्र विचरण कर रहा है । वह घर पर बैठकर कहीं भी बातचीत कर सकता है । कहीं के भी दर्शन कर सकता है यहाँ तक कि खान-पान, रहन-सहन, पहनना- ओढ़ना तक वैज्ञानिक हो गया है । विज्ञान की सहायता से वह तन का रक्त जमा देने वाली ठण्ड और झुलसा देने वाली गर्मी में रह सकता है । इस सबको वरदान ही तो कहा जाएगा आधुनिक विज्ञान का ।
दूसरी तरफ उनकी बनाई सभी वरदानी वस्तुएँ क्षण भर में प्राण भी ले सकती हैं । उनके अतिरिक्त आज जो भयानकतम मारक शस्त्रास्त्र बन गए हैं, जैविक और रासायनिक शस्त्रों का निर्माण किया जा रहा है, युद्ध की जो नई प्रणालियाँ विकसित की जा रही हैं, उनके द्वारा कुछ ही क्षणों में धरती पर से मनुष्यता क्या सारी वनस्पतियों, नदियों, पहाड़ी तक का नाम मिटाया जा सकता है ।
इन विवेचन से स्पष्ट है कि, अपनी खोजों से वरदान रूप में मानव को विज्ञान जितना कुछ दे रहा, उससे कहीं अधिक तेजी से अभिशाप बनकर सर्वस्व ले भी सकता है । सो विज्ञान वरदान तो है, उससे कहीं बड़ा अभिशाप भी हैं, इसमें तनिक संदेह नहीं ।
Regards
Riyanshu.....!!☺
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