Hindi, asked by Gourav121, 1 year ago

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गंधार शैली की विशेषताएँ बताइए।. मौयॉ समाज और कुषाण काल की मूति कला का अंतर बताइए।

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Answered by sagar242
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गांधार कला एक प्रसिद्ध प्राचीन भारतीय कला है। ... सामान्यतः गान्धार शैली की मूर्तियों का समय पहली शती ईस्वी से चौथी शती ईस्वी के मध्य का है तथा इस शैली की श्रेष्ठतम रचनाएँ ५० ई० से १५० ई० के मध्य की मानी जा सकती हैं।
Answered by jayathakur3939
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गंधार शैली , मौयॉ काल और कुषाण काल की मूर्ति कला का अंतर

गंधार शैली की विशेषताएँ बताइए :- गांधार कला एक प्रसिद्ध प्राचीन भारतीय कला है। इस कला का उल्लेख वैदिक तथा बाद के संस्कृत साहित्य में मिलता है। सामान्यतः गान्धार शैली की मूर्तियों का समय पहली शती ईस्वी से चौथी शती ईस्वी के मध्य का है | गांधार कला की विषय-वस्तु भारतीय थी, परन्तु कला यूनानी और रोमन थी। इसलिए गांधार कला को ग्रीको-रोमन, ग्रीको बुद्धिस्ट या हिन्दू-यूनानी कला भी कहा जाता है।इस कला में पहली बार बुद्ध की सुन्दर मूर्तियाँ बनायी गयीं |

इनके निर्माण में सफेद और काले रंग के पत्थर का व्यवहार किया गया। गांधार कला को महायान धर्म के विकास से प्रोत्साहन मिला। इसकी मूर्तियों में मांसपेशियाँ स्पष्ट झलकती हैं और आकर्षक वस्त्रों की सलवटें साफ दिखाई देती हैं। इसकी मूर्तियों में भगवान बुद्ध यूनानी देवता अपोलो के समान प्रतीत होते हैं। इस शैली में उच्चकोटि की नक्काशी का प्रयोग करते हुए प्रेम, करुणा, वात्सल्य आदि विभिन्न भावनाओं एवं अलंकारिता का सुन्दर सम्मिश्रण प्रस्तुत किया गया है। इस शैली में आभूषण का प्रदर्शन अधिक किया गया है। इसमें सिर के बाल पीछे की ओर मोड़ कर एक जूड़ा बना दिया गया है जिससे मूर्तियाँ भव्य एवं सजीव लगती है। कनिष्क के काल में गांधार कला का विकास बड़ी तेजी से हुआ।

मौयॉ काल  :- मौर्य कला का विकास भारत में मौर्य साम्राज्य के युग में (चौथी से दूसरी शदी ईसा पूर्व) हुआ। सारनाथ और कुशीनगर जैसे धार्मिक स्थानों में स्तूप और विहार के रूप में स्वयं सम्राट अशोक ने इनकी संरचना की। मौर्य काल का प्रभावशाली और पावन रूप पत्थरों के इन स्तम्भों में सारनाथ,इलाहाबाद, मेरठ, कौशाम्बी, संकिसा और वाराणसी जैसे क्षेत्रों में आज भी पाया जाता है।

कुषाण काल :- कुषाण कला , कुषाण वंश के काल में लगभग पहली शताब्दी के अंत से तीसरी शताब्दी तक उस क्षेत्र में सृजित कला का नाम है, जो अब मध्य एशिया, उत्तरी भारत, पाकिस्तान और अफ़्गानिस्तान के कुछ भागों को समाहित करता है।  कुषाणों ने एक मिश्रित संस्कृति को बढ़ावा दिया, जो उनके सिक्कों पर बने विभिन्न देवी देवताओं, यूनानी-रोमन, ईरानी और भारतीय, के द्वारा सबसे अच्छी तरह समझी जा सकती है। उस काल की कलाकृतियों के बीच कम से कम दो मुख्य शैलीगत विविधताएँ देखी जा सकती हैं |  

ईरानी उत्पत्ति की शाही कला और यूनानी रोमन तथा भारतीय स्ट्रोटोन से मिश्रित बौद्ध कला। ईरानी उत्पत्ति की शाही कला के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण सात कुषाण राजाओं द्वारा जारी स्वर्ण मुद्राएं, शाही कुषाण प्रतिकृतियाँ (उदाहरण: कनिष्क की प्रतिमा) और अफगानिस्तान में सुर्ख कोतल में प्राप्त राजसी प्रतिकृतियाँ हैं। कुषाण कलाकृतियों की शैली कठिन, पुरोहितवादी और प्रत्यक्ष है और वह व्यक्ति की आंतरिक शक्ति व गुणों को रेखांकित करती है।

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