Hindi, asked by dikshapalak4643, 10 months ago

Prali jalane ke liye letter hindi me

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Answered by ravipal9721
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धान और गेहूं की कटाई के बाद खेतों में खड़ी पराली तथा नाड़ को आग लगाने पर प्रतिबंध के बावजूद किसानों द्वारा अपने खेतों को जल्दी खाली करके दूसरी फसल के लिए तैयार करने के उद्देश्य से पराली को आग लगाने का रुझान काफी पुराना है। इसके अंतर्गत पंजाब में किसान प्रतिवर्ष लगभग अढ़ाई करोड़ टन पराली आग के हवाले करते हैं। 

इससे कृषि भूमि का सत्यानाश होता है क्योंकि खेतों में मौजूद भूमिगत कृषि मित्र कीट तथा सूक्ष्म जीव आग की गर्मी के कारण मर जाते हैं। इससे भूमि की उर्वरता भी कम होती है और फसलों को तरह-तरह की बीमारियां लगने के अलावा शत्रु कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है।

मानव स्वास्थ्य के लिहाज से भी यह धुआं अत्यंत हानिकारक है। इससे वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और मिथेन गैसों की मात्रा बढ़ जाती है। एक टन नाड़ अथवा पराली जलाने पर हवा में 3 किलो कार्बन कण, 60 किलो कार्बन मोनोऑक्साइड, 1500 किलो कार्बन डाईऑक्साइड, 200 किलो राख और 2 किलो सल्फर डाईऑक्साइड फैलते हैं। इससे लोगों की त्वचा एवं सांस संबंधी तकलीफें बढ़ जाती हैं। 

आग लगाने से खेतों के इर्द-गिर्द दूर-दूर तक धुआं फैल जाने से वायुमंडल में गर्मी पैदा होती है। वातावरण बुरी तरह प्रदूषित होकर चारों ओर गहरा धुंधलका छा जाता है। पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की समस्या इतनी गंभीर हो गई है कि दिल्ली तक इसका असर दिखाई देता है। 

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