"Question 2 धनराज पिल्लै ने ज़मीन से उठकर आसमान का सितारा बनने तक की यात्रा तय की है। लगभग सौ शब्दों में इस सफ़र का वर्णन कीजिए।
Class 7 - Hindi - संघर्ष के कारण मैं तुन�... Page 133"
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धनराज पिल्लै खिड़की ,पुणे में रहने वाला एक गरीब परिवार का लड़का था। उसके दोनों बड़े भाई हॉकी खेलते थे। वह भी हॉकी खेलना चाहता था परंतु उसके पास हॉकी स्टिक खरीदने के पैसे नहीं थे। वह अपने साथियों से स्टिक मांगकर हॉकी खेलता था। जब धनराज के बड़े भाई को भारतीय कैंप के लिए चुन लिया गया तो वह भाई की दी हुई पुरानी स्टिक से खेलने लगा। 16 साल की आयु में उसने जूनियर राष्ट्रीय हॉकी मणिपुर में सन् 1985 में खेली थी। सन् 1986 में उसे सीनियर टीम में चुन लिया गया और उसने अपने बड़े भाई रमेश के साथ मुंबई लीग में बेहतरीन खेल खेला। सन 1989 में इसे ऑलविन एशिया कप कैंप के लिए चुन लिया गया। सन् 1989 में इसने नई दिल्ली के राष्ट्रीय खेलों में भाग लिया। इसके बाद तो वह निरंतर ऊंचा ही उठता चला गया। सन् 1999 में महाराष्ट्र सरकार ने उसकी प्रतिभा को सम्मानित करते हुए उसे मुंबई के हीरानंदानी पवई कांप्लेक्स में फ्लैट दिया। इस प्रकार पिल्लै एक सितारा बन गया।
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धनराज पिल्लै की ज़मीन से उठकर आसमान का सितारा बनने तक की यात्रा कठिनाइयों और संघर्षों से भरी थीं। धनराज पिल्लै एक साधारण परिवार के होने के कारण उनके लिए हॉकी में आना इतना आसान न था। उनके पास हॉकी खरीदने तक के पैसे नहीं थे। उन्हें हॉकी खेलने के लिए अपने मित्रों से हॉकी स्टिक उधार माँगनी पड़ती थी। लेकिन कहते हैं ना जहाँ चाह वहाँ राह धनराज पिल्लै ने हार न मानते पुरानी स्टिक से ही निष्ठा और लगन से अभ्यास करते रहे और विश्व स्तरीय खिलाड़ी बनकर दिखाया। ऑलविन एशिया कैंप में चुने जाने के बाद धनराज पिल्लै ने मुड़कर कभी पीछे नहीं देखा अर्थात् उसके बाद वे लगातार सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते गए।
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