राजस्व की विषय-सामग्री का विवरण दीजिए।
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कृषि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत मानव की कृषि सम्बन्धी समस्त क्रियाओं तथा कृषि उत्पादन का मानव के भौतिक जैविक, आर्थिक एवं सामाजिक पक्षों पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन एवं विश्लेषण किया जाता है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं की, कृषि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत किसान क्या पैदा करे, कौन-सा सहायक धन्धा अपनाये, कितनी पैदावार किन-किन वस्तुओ का उपयोग करे आदि समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। आजकल कृषि व्यवसाय के लिए की जाने लगी है, मात्र जीवन-निवार्ह के लिए नहीं। अत: कृषि का उत्पादन अन्य क्षेत्रो, देशो और अंतराष्ट्रीय वस्तु समझौता को ध्यान में रखकर करना पड़ता है। कृषि अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री का संक्षिप्त विवरण अग्रांकित चार्ट व्दारा प्रदर्शित किया गया है।
चार्ट से स्पष्ट होता है की ये सभी विभाग आपस में सम्बन्धित और एक-दूसरे पर निर्भर है। इसलिए किसी एक का भी अध्ययन दुसरो से पृथक करना सम्भव नहीं है। साथ ही कृषि अर्थशास्त्र का क्षेत्र इतना व्यापक है की इसे संकुचित सीमा में नहीं बाधा जा सकता। फिर भी यहाँ पर कृषि विज्ञान के अन्तर्गत आने वाले अर्थशास्त्र के चारो विभागों- उत्पादन, उपभोग, विनिमय एवं वितरण से सम्बन्धित क्रियाओं एवं समस्याओं का अध्ययन किया जा रहा है। इनका संक्षिप्त विवरण निम्नवत है।
1.उत्पादन – भारत में कृषि उत्पादन जीवन निर्वाह का एक साधन रहा है, इसको व्यापार की दृष्टी से नहि समझा गया जिससे कृषि उत्पादन कम रहा l जैसे जैसे जनसंख्या में वृद्धी होती जा रही है तथा विज्ञान में उन्नती होती जा रही है, वैसे-वैसे कृषि को भी एक व्यापार के रूप में समझा जाने लगा है l उत्पादन के अन्तर्गत, उत्पादन के विभिन्न उत्पादनो, उनकी विशेषताओं, उनका वर्गीकरण, उनकी उपयोगिता तथा उत्पत्ति के नियम आदी का विश्लेषण किया जाता है l उत्पादन के पाच साधन होते है- i) पुंजी, ii) श्रम, iii) भूमी, iv) साहस, v) संगठन l अधिक मात्रा में उत्पादन करने के लिए इन पाच साधनो का आदर्श संयोग होना चहिए l कृषकों को इस बात का ज्ञान होना चहिए कि कृषि में उत्पत्ती ऱ्हास नियम ही कार्यशील नहीं होता बल्की उत्पत्ती वृद्धी नियम भी कार्यशील होता हैl कृषि में उत्पादन लागत को कम किया जा सकता हैl
2.उपभोग – उपभोग का अर्थशास्त्र कृषकों की आय तथा उसके पारिवारिक व्यय से सम्बन्ध रखता है । कृषक खाद्यान्न सम्बन्धित वस्तुओं का उत्पादन करता है और साथ ही साथ उन वस्तुओं का उपभोग करता है । कुछ वस्तुओं को बेचकर वह अन्य वस्तुओं का उपभोग करता है । वह इस बात का प्रयास करता है कि किस प्रकार वह उपभोग के अनुसार अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त कर सकता है । सरकार भी इस बात का ध्यान रखती है कि कृषकों की उपभोग वस्तुओं पर कम से कम कितना कर लगाया जाए जिसको वे सरलता से अदा कर सकें
3.विनिमय – दो पक्षों के बीच वैधानिक, स्वैच्छिक तथा पारस्परिक रूप से धन की अदला – बदली को विनिमय कहा जाता है । इसके अन्तर्गत मुख्य रूप से अग्रलिखित चार बातों का अध्ययन किया जाता है :-
कृषि विपणन ,
कृषि उत्पादों का मूल्य निर्धारण ,
कृषि साख एवं अधिकोषण ,
कृषि उपज का अन्तर्देशीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार ।
कृषि विज्ञान के इस विभाग द्वारा कृषको को इस बात से अवगत कराया जाता है कि वह अपनी उत्पादित वस्तुओं को कब, कितना और कैसे बेचे जिससे उनको उचित मूल्य प्राप्त हो सके
4.वितरण – कृषि अर्थशास्त्र के इस विभाग में उत्पादन के साधनों के पुरस्कार का विवेचन किया जाता है । इस विभाग में भूमि का लगान, कृषि पूँजी पर ब्याज, कृषि श्रम की मजदूरी, कृषि प्रबन्धक का वेतन तथा कृषि साहस का लाभ निर्धारित करने की समस्याओं का अध्ययन किया जाता है । मजदूरी, लगान, व्याज देने के पश्चात जो शेष बचता है वह कृषक का लाभ होता है ।
5.राजस्व एवं नियोजन — कृषि राजस्व का अर्थ कृषि से राज्य को होने वाली आय से है । कृषि अर्थशास्त्र राजस्व के साथ – साथ राज्य की ओर से कृषि सुधार पर किये जाने वाले निवेश का भी अध्ययन करता है । कृषि विकास के लिए नियोजन अति आवश्यक होता है । इसलिए वर्तमान समय में कृषि अर्थशास्त्र का यह विभाग अधिक महत्वपूर्ण हो गया है । इस विभाग में कृषि नियोजन तथा नीति निर्धारण के सम्बन्ध में अध्ययन किया जाता है।
अतः स्पष्ट है कि कृषि अर्थशास्त्र की विषय सामग्री बहुत व्यापक है जिसे संकुचित सीमा में नहीं बाँधा जा सकता है क्योंकि यह व्यक्तिगत, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय तीनों स्तरों पर फार्म संगठन एवं फार्म प्रबन्ध का सूक्ष्म एवं विस्तृत दोनों दृष्टियों से अध्ययन एवं विश्लेषण प्रस्तुत करता है । इसके अध्ययन का मुख्य लक्ष्य समाज के कल्याण में अधिकतम वृद्धि करना है । वर्तमान समय में कृषि क्षेत्र में अनेक नवीन अनुसन्धान हो रहे है जिसके परिणामस्वरूप कृषि अर्थशास्त्र का क्षेत्र और भी विस्तृत होता जा रहा है । कृषि अर्थशास्त्र कृषि क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाली समस्त आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं पर प्रकाश तो डालता ही है साथ ही इन समस्याओं के समाधान हेतु उपयुक्त समाधान प्रस्तुत करता है ।
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