राकेशः-भगिनि! विरम विरम। अहम् स्वापराधं स्वीकरोमि लज्जितश्चास्मि। अद्यप्रभृति
कदापि गर्हितमिदं कार्यम् स्वप्नेऽपि न चिन्तयिष्यामि। यथैव अम्बिका मम हृदयस्य संपूर्ण स्नेहस्य अधिकारिणी अस्ति, तथैव आगन्ता शिशुः अपि स्नेहाधिकारी भविष्यति पुत्रः भवतु पुत्री वा। अहम् स्वगर्हितचिन्तनं प्रति पश्चात्तापमग्नः अस्मि, अहम् कथं विस्मृतवान् ।
"यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैताः न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।"
अथवा "पितुर्दशगुणा मातेति।" त्वया सन्मार्गः प्रदर्शितः भगिनि। कनिष्ठाऽपि त्वम् मम गुरुरसि।
शब्दार्थ : विरम-विरम-रुको-रुको। लज्जितः-शर्मिंदा। अद्यप्रभृति-आज से। गर्हितम्-पाप रूप। इदम्-यह। स्वप्नेऽपि-सपने में भी। स्नेहस्य-प्यार का/की। अधिकारिणी-अधिकार वाली। आगन्ता-आनेवाली/वाला। शिशुः-बच्चा। स्नेहाधिकारी-प्यार का अधिकारी। कनिष्ठा-छोटी। स्वगर्हिताचिन्तम्-अपनी गलत सोच। प्रति-के लिए। पश्चात्तापमग्नः-पछताने में मग्न। विस्मृतवान्-भूल गया। नार्यः-नारियाँ। पूज्यन्ते-पूजी जाती हैं। रमन्ते-निवास करते हैं। यत्र, एताः-जहाँ, ये। सर्वाः-सारी। अफलाः-निष्फल। क्रियाः-क्रियाएँ। पितुः-पिता का। दशगुणा-दस गुणा अधिक। प्रदर्शितः-दिखाया। गुरुः-गुरु (बड़ी)।
सरलार्थ : राकेश-हे बहन! रुको-रुको। मैं अपना अपराध स्वीकार करता हूँ और शर्मिंदा हूँ। आज से यह निन्दा के योग्य काम (को) स्वप्न में भी करना नहीं सोचूंगा। जैसे अम्बिका मेरे दिल (कलेजे) के सारे प्यार की अधिकारी है वैसे ही आने वाला शिशु (बच्चा) भी प्यार का अधिकारी होगा, पुत्र हो अथवा पुत्री। मैं अपने गन्दे सोच के लिए पछतावे से भर गया हूँ। मैं कैसे भूल गया
जहाँ नारियाँ पूजी जाती हैं वहाँ देवता रमण (निवास) करते हैं। जहाँ ये नहीं पूजी जातीं वहाँ सारी क्रियाएँ असफल हो जाती हैं।"
अथवा-पिता से दस गुना अधिक माँ होती है।" तुमने अच्छा रास्ता दिखाया बहन। छोटी होती हुई भी तुम मेरी गुरु (बड़ी) हो।
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