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रानी लक्ष्मीबाई के साथ लड़ने वाली उन की सखियों के नाम क्या थे​

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Answered by jayadumka
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झांसी की रानी लक्ष्मीबाई पर हर देशवासी को नाज है. लेकिन झांसी की रानी को नाज था झलकारी बाई पर. वह रानी लक्ष्मीबाई की सखी थीं और अद्वितीय वीरांगना थीं. आज से लगभग डेढ़ सौ साल से भी अधिक पहले यह बात कल्पनातीत है कि किसी महिला का पति शहीद हो जाए और वह महिला शोक मनाने की बजाय देश के लिए प्राणों की आहुति देने को तैयार हो जाए. झलकारी बाई नें कुछ ऐसा ह

आदमखोर तेंदुए का अकेले सामना करने वाली, गुंडों के गिरोह को धूल चटाने वाली, यहां तक कि अपनी जान दांव पर लगा कर झांसी की रानी की जगह ले अंग्रेजों से लोहा लेने वाली झलकारी बाई का नाम इतिहास में सुनहरे अक्षरों से लिखा हुआ है. उन्होंने अच्छे जीवन के लिए स्वतंत्रता का इंतजार नहीं किया, बल्कि खुद ही रानी लक्ष्मी बाई का दाहिना हाथ बन अंग्रेजों से लड़ने के लिए रण में उतर गईं. 1857 के संग्राम की खास बात यह रही कि इस दौरान कीर्ति और यश से भरे पन्ने सिर्फ पुरुषों नहीं, बल्कि महिलाओं के हिस्से भी खूब आए. हिंदुस्तान में वीरांगनाओं के इतिहास में एक सुनहरा नाम वीरांगना झलकारी बाई का भी है.

तभी तो मैथिलीशरण गुप्त ने भी झलकारी बाई की बहादुरी पर यह शब्द लिखे थे-

जा कर रण में ललकारी थी,

वह झांसी की झलकारी थी.

गोरों से लड़ना सिखा गई,

है इतिहास में झलक रही,

वह भारत की ही नारी थी.

ऐसे शुरू हुआ वीरांगना का जीवन

झलकारी बाई का जन्म 22 नवंबर 1830 को झांसी के निकट भोजला गांव में एक निर्धन कोली परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम सदोवर सिंह और माता का नाम जमुनादेवी था. मां की मृत्यु उनके बचपन में ही हो गई थी.

पिता सैनिक थे. तो पैदाइश से ही हथियारों के साथ उठना-बैठना रहा. पढ़ाई-लिखाई नहीं हुई. पर उस वक्त पढ़ता कौन था. राजा-रानी तक जिंदगी भर शिकार करते थे. उंगलियों पर जोड़ते थे. उस वक्त बहादुरी यही थी कि दुश्मन का सामना कैसे करें. चतुराई ये थी कि अपनी जान कैसे बचायें.

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घुड़सवारी और शस्त्र चलाने की ली शिक्षा

झलकारी बाई बचपन से ही साहसी और दृढ़ थीं. उन्होंने घुड़सवारी और शस्त्र की शिक्षा ग्रहण की और खुद को एक अच्छा योद्धा बनाया. झलकारी बाई की वीरता की कहानियों में एक प्रसंग है कि एक बार डकैतों के एक गिरोह ने गांव के ही एक व्यापारी पर हमला कर दिया. तब झलकारी बाई ने अपनी बहादुरी से उन्हें पीछे हटने को मजबूर कर दिया था.

वीरांगना झलकारी बाई विवाह रानी झांसी की सेना के सेनापति पूरन सिंह के साथ हुआ था. पति पूरन किले की रक्षा करते हुए शहीद हो गए, लेकिन झलकारी ने बजाय अपने पति की मृत्यु का शोक मनाने के, अंग्रेजों को धोखा देने की एक योजना बनाई थी. झलकारी ने रानी लक्ष्मीबाई की तरह कपड़े पहने और झांसी की सेना की कमान अपने हाथ में ले ली. जिसके बाद वह किले के बाहर निकल ब्रिटिश जनरल ह्यूग रोज़ के शिविर में उससे मिलने पहुंच गईं थीं.

तेंदुए से भी अकेले ही लड़ गईं

एक और प्रसंग है कि एक बार जंगल में उनका सामना तेंदुए से हुआ. उससे डरे बिना उन्होंने न ही केवल अकेले ही उसका सामना किया बल्कि अपनी कुल्हाड़ी से उसे मार गिराया.

रानी लक्ष्मी बाई से हूबहू मिलती थीं झलकारी बाई

इतिहास में लिखा गया है कि झलकारी बाई की शक्ल रानी लक्ष्मी बाई से हूबहू मिलती थी. इतिहासकारों ने उन्हें झांसी की रानी का हमशक्ल बताया है. एक प्रसंग के अनुसार एक बार गौरी पूजा का अवसर था और झलकारी बाई बाकी महिलाओं के साथ मिलकर रानी लक्ष्मी बाई का सम्मान करने पहुंचीं. उस समय झांसी की रानी उन्हें देखते ही अवाक रह गई थीं क्योंकि झलकारी हाई बिल्कुल उनकी तरह दिखती थीं. रानी लक्ष्मी बाई ने भी उनकी बहादुरी के किस्से सुने थे, जिसके चलते उन्होंने अपनी दुर्गा सेना में झलकारी बाई को शामिल कर लिया.

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दहाड़ कर बोला 'मुझे फांसी दो!'

कहा जाता है कि संग्राम के दौरान एक जैसी शक्ल को ताकत बना कर झलकारी बाई ने रानी लक्ष्मी बाई को किला छोड़ कर जाने की सलाह दी थी और खुद रानी के कपड़े पहन कर अंग्रेजों से लोहा लेने रण में उतर गई थीं. युद्ध करते हुए अंग्रेजों ने झलकारी बाई को चारों तरफ से घेर लिया और बंदी बना कर जनरल ह्यूरोज के सामने ले गए. वहां पर किसी ने उन्हें पहचान लिया और बताया कि वह रानी लक्ष्मी बाई नहीं बल्कि उनके दुर्गा दल की नायिका झलकारी बाई हैं.

जब जनरल ने पूछा कि उनके साथ क्या किया जाना चाहिए तो झलकारी बाई ने बहादुरी से रही, 'मुझे फांसी दे दो'. इस बात से प्रभावित जनरल ने उन्हें छोड़ दिया. हालांकि, उनकी मृत्यु कैसे हुई इस पर पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं. कुछ लोग मानते हैं कि रण में लड़ते-लड़ते वह वीर गति को प्राप्त हो गई थीं, जबकि कुछ का कहना है कि अंग्रेजों ने उन्हें फांसी दे दी थी या कारावास में ही उनकी मृत्यु हुई. झलकारी बाई की मृत्यु को लेकर कोई खास प्रमाण नहीं मिलते, लेकिन वह बहुजन समाज में पूजी जाती हैं. बहुजन समाज उनकी जयंति पर उनकी शौर्यगाथा पर आधारित नाटक भी करता है.

जारी हुआ डाक टिकट

भारत सरकार ने 22 जुलाई 2001 को झलकारी बाई के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था. उनकी प्रतिमा और एक स्मारक अजमेर, राजस्थान में है. उत्तर प्रदेश सरकार ने उनकी एक प्रतिमा आगरा में स्थापित की है. लखनऊ में झलकारी बाई के नाम से एक हॉस्पिटल भी है.

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