Hindi, asked by kesiyaannsony2005, 9 months ago

रैदास के पदों में व्याप्त तत्कालीन समाज की विषमता के संदर्भ में अपना मत व्यक्त करें। please answer this ASAP. EMERGENCY!!!! this is from the raidas ka pad chapter.

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Answered by abhimalviya121
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Answer:

कुलभूषण कवि रविदास उन महान सन्तों में अग्रणी थे जिन्होने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराईयों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान किया । इनकी रचनाओं की विशेषता लोक - वाणी का अद्भूत प्रयोग रही है। जिससे जनमानस पर इनका अमिट प्रभाव पड़ता है। मधुर एंव सहज संत रैदास की वाणी ज्ञानाश्रयी होते हुए भी ज्ञानाश्रयी एंव प्रेमाश्रयी शाखाओं के मध्य सेतू की तरफ है। प्राचीन काल से ही भारत में विभिन्न धर्मो तथा मतों के अनुयायी निवास करते रहे है। संत रैदास के समय में देश में मुस्लिम शासन था। हिन्दू पराजित जाति थी। दोनो धर्मो के कुलीन वर्ग एक दूसरे से नफरत करते थे। जहां मुल्ला अपने धर्म को श्रैष्ठ बताकर सभी को इस्लाम धर्म मनाने को मजबूर कर रहे थे। वहीं पंडित पुराहित अपने को श्रेष्ठ सिद्व कर रहे थे। इस खींचतान से समाज निरन्तर पतन की ओर बढ रहा था।

प्रस्तावना

संत रविदास द्वारा रचित ‘‘ रविदास के पद” नारद भक्ति सूत्र रविदास की बानी आदि संग्रह भक्तिकाल की अनमोल कृतियों में गिनी जाती है । स्वामी रामानंद के ग्रंथ के आधार पर संत रविदास का जीवनकाल संवत 1417 से 1597 है। उन्होने यह 126 वर्ष का दीर्घकालिन जीवन अपनी अटूट योग और साधना के बल पर जीय।

संत रविदास जी की जो बात मुझे सबसे अच्छी लगी वह यह कि उन्होने अपनी आजीविका कमाते - 2 ही अपना दर्शन किया। संत का जीवन व्यतीत किया और उन्होने भिक्षा का सहारा नही लिया। संत रविदास ने मथुरा , प्रयाग , वृन्दावन व हरिद्वार आदि धार्मिक एंव पवित्र स्थानों की यात्राएं की। उन्होने लोगों से सच्ची भक्ति करने का संदेश दिया।

संत रैदास ने ऐसे समाज की परिकल्पना की थी। जिसमें कोई उंच नीच , भेद भाव , राग द्वेष न हो , सभी बराबर हो , सामाजिक कुरीतियां ना हों। भारतीय समाज निर्माता बाबा भीम राव अम्बेडकर पर उनकी विचार धारा का गहरा प्रभाव था। अपने जीवन में संघर्ष करने की प्रेरणा उन्होने संत रैदास से ही पाई थी तथा उनके आदर्श सामाजिक समता तथा प्रजातांत्रिक समाजवाद की कल्पना को भारतीय संविधान में स्वीकार करने की कोशिश भी की। रैदास ऐसे आदर्श समाज की परिकल्पना करते हैं। जिसमें धर्म के नाम ब्राहांडबर व धार्मिक कुरीतियां ना हो , जहां जाति पाति का भेदभाव ना हो। सभी बराबर हो , उंच नीच की प्रथाम समाप्त हो जाए।

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