Hindi, asked by rishit7722, 6 months ago

रियलिटी शो ने बच्चो का बचपन बरबाद करा दिया है।" इससे कोन कोन सी समस्याएं उतपन्न हो रही है? इसका क्या समाधान है? आप के इस विषय में क्या विचार है। 250 words.​

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Answered by stutisinha43
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Answer:

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Explanation:

बचपन एक ऐसी उम्र होती है, जब बगैर किसी तनाव के मस्ती से जिंदगी का आनन्द लिया जाता है। नन्हे होंठों पर फूलों सी खिलती हँसी, वो मुस्कुराहट, वो शरारत, रूठना, मनाना, जिद पर अड़ जाना ये सब बचपन की पहचान होती है। सच कहें तो बचपन ही वह वक्त होता है, जब हम दुनियादारी के झमेलों से दूर अपनी ही मस्ती में मस्त रहते हैं। 

क्या कभी आपने सोचा है कि आज आपके बच्चों का वो बेखौफ बचपन कहीं खो गया है? आज मुस्कुराहट के बजाय इन नन्हे चेहरों पर उदासी व तनाव क्यों छाया रहता है? अपनी छोटी सी उम्र में पापा और दादा के कंधों की सवारी करने वाले बच्चे आज कंधों पर भारी बस्ता टाँगे बच्चों से खचाखच भरी स्कूल बस की सवारी करते हैं। 

छोटी सी उम्र में ही इन नन्हो को प्रतिस्पर्धा की दौड़ में शामिल कर दिया जाता है और इसी प्रतिस्पर्धा के चलते उन्हें स्वयं को दूसरों से बेहतर साबित करना होता है। इसी बेहतरी व प्रतिस्पर्धा की कश्मकश में बच्चों का बचपन कहीं खो सा जाता है। 

  आज मुस्कुराहट के बजाय इन नन्हे चेहरों पर उदासी व तनाव क्यों छाया रहता है? अपनी छोटी सी उम्र में पापा और दादा के कंधों की सवारी करने वाले बच्चे आज कंधों पर भारी बस्ता टाँगे बच्चों से खचाखच भरी स्कूल बस की सवारी करते हैं।       

इस पर भी माँ-बाप उन्हें गिल्ली-डंडे, लट्टू, कैरम व बेट-बॉल की जगह वीडियोगेम थमा देते हैं, जो उनके स्वभाव को ओर अधिक उग्र बना देते हैं। अक्सर यह देखा जाता है कि दिनभर वीडियोगेम से चिपके रहने वाले बच्चों में सामान्य बच्चों की अपेक्षा चिड़चिड़ापन व गुस्सैल प्रवृत्ति अधिक पाई जाती है। 

आजकल होने वाले रियलिटी शो भी बच्चों के कोमल मन में प्रतिस्पर्धा की भावना को बढ़ा रहे हैं। नन्हे बच्चे जिन पर पहले से ही पढाई का तनाव रहता है। उसके बाद कॉम्पीटिशन में जीत का दबाव इन बच्चों को कम उम्र में ही बड़ा व गंभीर बना देता है। 

अब उन्हें अपने बचपन का हर साथी अपना प्रतिस्पर्धी नजर आता है, जिसका बुरा से बुरा करने को वे हरदम तैयार रहते हैं। क्या आप जानते हैं कि एनिमिनेशन के द्वारा बच्चों को प्रतियोगिता से अचानक उठाकर बाहर कर देना उनके कोमल मन पर क्या प्रभाव डालता होगा? 

‍ नौकरीपेशा माता-पिता के लिए अपने बच्चों को दिनभर व्यस्त रखना या किसी के भरोसे छोड़ना एक फायदे का सौदा होता है क्योंकि उनके पास तो अपने बच्चों के लिए खाली वक्त ही नहीं होता है इसलिए वे बच्चों के बचपन को छीनकर उन्हें स्कूल, ट्यूशन, डांस क्लासेस, वीडियोगेम आदि में व्यस्त रखते हैं, जिससे कि बच्चा घर के अंदर दुबककर अपना बचपन ही भूल जाए। 

बाहर की हवा, बाग-बगीचे, दोस्तों के साथ मौज-मस्ती यह सब क्या होता है, उन्हें नहीं पाता। हाँ नया वीडियोगेम कौन सा है या कौन सी नई एक्शन मूवी आई है, ये इन बच्चों को बखूबी पता होता है। 

पढ़ाई-लिखाई अपनी जगह है, आज के दौर में उसकी अहमियत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है परंतु बच्चों का बचपन भी दोबारा लौटकर नहीं आता है। कम से कम इस उम्र में तो आप उन्हें खुला दें और उन्हें बचपन का पूरा लुत्फ उठाने दें।

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