Hindi, asked by rithvikgubbala, 9 months ago

• रक्त संबंधी बीमारियों की सूची बनाइए। उनसे बचाव और उपचार की जानकारी इंटरनेट की
सहायता से प्राप्त करें।​

Answers

Answered by himanshugupta9to10
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Answer:

1.सिकल-सेल रोग= (SCD) या सिकल-सेल रक्ताल्पता या ड्रीपेनोसाइटोसिस एक आनुवंशिक रक्त विकार है जो ऐसी लाल रक्त कोशिकाओं के द्वारा चरितार्थ होता है जिनका आकार असामान्य, कठोर तथा हंसिया के समान होता है। यह क्रिया कोशिकाओं के लचीलेपन को घटाती है जिससे विभिन्न जटिलताओं का जोखिम उभरता है। यह हंसिया निर्माण, हीमोग्लोबिन जीन में उत्परिवर्तन की वजह से होता है। जीवन प्रत्याशा में कमी आ जाती है, एक सर्वेक्षण के अनुसार महिलाओं की औसत जीवन प्रत्याशा 48 और पुरुषों की 42 हो जाती है।सिकल सेल संकट संपादित करें

"सिकल सेल संकट" अवधारणा का इस्तेमाल रोगियों में उन स्वतंत्र तथा गंभीर अवस्थाओं के लिए किया जाता है जहां सिकल सेल रोग पाया जाता है।

2.आंतरिक रक्तस्राव

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जब वाहिका तंत्र से निकलकर रक्त, शरीर गुहा (शरीर के अन्दर ही) जाकर नष्ट होता है तो उसे आंतरिक रक्तस्राव (Internal bleeding या internal hemorrhage) कहते हैं।[1] यह एक गंभीर चिकित्सीय आपातस्थिति है और गंभीरता की सीमा इस बात पर निर्भर करता है कि रक्त ह्रास की दर क्या है और रक्तस्राव कहाँ (जैसे हृदय, मस्तिष्क, पेट, फेफड़े) हो रहा है। अगर उचित चिकित्सा उपचार जल्दी प्राप्त नहीं हुआ तो इसके कारण मृत्यु या पूर्णहृद्रोध हो सकता है।

3.थैलासीमिया

मानव रोग खून का एक विकार जिसमें ऑक्सीजन वाहक प्रोटीन सामान्‍य से कम मात्रा में होते हैं.

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थेलेसीमिया (अंग्रेज़ी:Thalassemia) बच्चों को माता-पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला रक्त-रोग है। इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया में गड़बड़ी हो जाती है जिसके कारण रक्तक्षीणता के लक्षण प्रकट होते हैं। इसकी पहचान तीन माह की आयु के बाद ही होती है। इसमें रोगी बच्चे के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है जिसके कारण उसे बार-बार बाहरी खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है।

4.मैरो डोनर रजिस्ट्री इंडिया

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थैलेसीमिया रोग

थैलेसीमिया के लिये इसके अलावा इस रोग के रोगियों के मेरु रज्जु (बोन मैरो) ट्रांस्प्लांट हेतु अब भारत में भी बोनमैरो डोनर रजिस्ट्री खुल गई है।[1] मैरो डोनर रजिस्ट्री इंडिया (एम.डी.आर.आई) में बोनमैरो दान करने वालों के बारे में सभी आवश्यक जानकारियां होगी जिससे देश के ही नहीं वरन विदेश से इलाज के लिए भारत आने वाले रोगियों का भी आसानी से उपचार हो सकेगा। यह केंद्र मुंबई में स्थापित किया जाएगा। ऐसे केंद्र वर्तमान में केवल अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों में ही थे। ल्यूकेमिया और थैलीसीमिया के रोगी अब बोनमैरो या स्टेम सेल प्राप्त करने के लिए इस केंद्र से संपर्क कर मेरुरज्जु दान करने वालों के बारे में जानकारी के अलावा उनके रक्त तथा लार के नमूनों की जांच रिपोर्ट की जानकारी भी ले पाएंगे। जल्दी ही इसकी शाखाएं महानगरों में भी खुलने की योजना है।

फिलहाल एम डीआर आई केंद्र मुंबई में काम करेगा किंतु जल्द ही दिल्ली, कोलकाता और बेंगलूर में भी इसकी शाखाएं खोलने की योजना है। इसका सबसे अधिक लाभ ऐसे रोगियों को होगा जिन्हें या तो अपने सग संबंधियों से बोनमैरो मिल नहीं पाती या उनकी बोनमैरो उनसे मेल नहीं खाती। डाक्टरों के मुताबिक देश में हर साल करीब 40000 रोगी बोनमैरो प्रत्यारोपण रजिस्ट्री की सुविधा नहीं होने के कारण मौत के मुंह में चले जाते हैं। मुंबई में एम डी आर आई केंद्र खोलने का महत्वपूर्ण निर्णय बाँम्बे हाँसि्पटल में हाल में आयोजित एक सम्मेलन के दौरान लिया गया जिसमें बिर्टेन, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और यूरोपीय देशों के जाने.माने डाक्टरोंएवं विशषज्ञों तथा देशभर के सभी प्रमुख प्रत्यारोपण केंद्रों के प्रतिनधियों ने हिस्सा लिया। एम डी आर आई से संबद् डाक्टर अशोक कृपलानी ने कहा कि देश में ऐसे केंद्र की बहुत जरूरत थी क्योंकि भारतीय मूल के लोगों को बोनमैरो प्रत्यारोपण में दो बडी समस्याएं पेश आती है। पहली यह कि भारतीय मूल के लोग पश्चिमी मूल के लोगों से अनुवांशिक रूप से भिन्ना होते हैं इसलिए उनकी बोनमैरो पश्चिमी लोगों की बोनमैरो से आसानी से मेल नहीं खाती और दूसरा यह कि अगर किसी भारतीय की बोनमैरो मेल खा भी जाती है तो उसे विदेश जाना पड़ता है जिससे उसका एक से डेड़ करोड रूपये तक का खर्च आ जाता है A जो हरेक के बस की बात नहीं होती। डाक्टर कृपलानी ने कहा कि फिलहाल विश्व भर में एक करोड बीस लाख से अधिक लोग विभिन्ना केंद्रों में बोनमैरो दान करनेके लिए अपने नाम सुचीबद् करा चुके है।

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