सोच-विचार कर लिखिए-कम बोलना और ज्यादा सुनना फायदेमंद कैसे होता है?
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Explanation:
तभी बात करें जब ज़रूरी हो: बोलने से पहले सोचें, की आप जो कहने वाले हैं वो वाकई ज़रूरी बात है की नहीं | जब आप किसी वार्तालाप में कुछ महत्वपूर्म योगदान नहीं कर रहे हों तो बोलने से परहेज़ करें |[१]
लोग उनकी बात को ज्यादा अहमियत देते हैं जो अपने शब्दों को सावधानी से चुनते हैं | अगर कोई हर बात में अपनी राय दे रहा है या कहानियां सुना रहा है तो लोग उसमें समय के साथ ध्यान देना बंद कर देते हैं | अगर आपको ज्यादा बात करने की आदत है, तो आप को भी बेकार जानकारी बांटने की आदत पड़ जाएगी |
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चुप्पी तोड़ने के लिए बात नहीं करें: कई बार लोग सिर्फ चुप्पी तोड़ने के लिए बात करते हैं | हो सकता है की आप ऑफिस या स्कूल में सिर्फ इसलिए बोलने लगे हैं, क्योंकि वो चुप्पी आपसे बर्दाश्त नहीं हो पा रही है | कई बार चुप्पी ठीक होती है और उसे ख़त्म करने के लिए बोलने की ज़रुरत नहीं है |[२]
उदाहरण के तौर पर, अगर आप और आपके साथ काम करने वाला एक समय पर ब्रेक रूम में हैं, तो आपको बातचीत शुरू करने की ज़रूरत नहीं है | अगर वो आपके साथ बातचीत करने में रूचि नहीं दिखा रहा है तो शायद वो आपस में जान पहचान नहीं बढ़ाना चाहता है |
ऐसी स्थिति में, एक विनम्र मुस्कान देकर चुप्पी को बरकरार रखें |
कम बोलने से आपकी बात में गंभीरता होती है, जिससे सभी आपकी बात को सुनने में दिलचस्पी लेते हैं। रिश्ते मज़बूत होते हैं- जब आप किसी को ध्यान से सुनते हैं तो बात करने वाले व्यक्ति को अच्छा महसूस होता है। सुनने से दूसरों की बातों को अच्छी तरह से समझा जा सकता है।