Hindi, asked by shewalea689, 6 months ago

सुख-सुविधा के समान वितरण विषय पर अपने विचार लिखिए।

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Answered by bantidevi854
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Answer:

जीवन सुख-दुःख का चक्र है। यही जीवन का सत्य है। अनुकूल समय में हमें इस पर विचार करने की आवश्यकता नहीं होती। जब कभी हमारे समक्ष विपरीत परिस्थितियाँ आती हैं तो हम किंकर्तव्य विमूढ़ हो जाते हैं। ऐसे में स्वजन और मित्रगण संबल बनते हैं, समाधान खोजने में सहायता करते हैं तो राहत मिलती है और मार्गदर्शक पुस्तकें तूफान में दीप-स्तंभ-सी मालूम होती हैं। ऐसी अधिकतर पुस्तकों का आधार गीता सार है। हमारे साथ ही ऐसा क्यों? इस प्रश्न का उत्तर हमें गीता से ही मिलता है।

दुःख के प्रमुख कारण बाहरी परिस्थितियाँ, आसपास के व्यक्तियों का व्यवहार, महत्वाकांक्षाएँ एवं कामनाएँ हैं। जीवन में आई प्रतिकूल परिस्थितियों एवं समस्याओं के लिए कोई दूसरा व्यक्ति या भाग्य दोषी नहीं है। उसके लिए हम स्वयं ही जिम्मेदार हैं, हमारे कर्मों और व्यवहार की वजह से ही परिस्थितियाँ निर्मित होती हैं। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि सामने वाले व्यक्ति का व्यवहार हमारे व्यवहार को प्रभावित न करें। हम अपने स्वभाव के अनुकूल क्रिया करें।

'मैं', 'मेरा', 'मेरे लिए' शब्दों का कम से कम प्रयोग होना चाहिए। अभी कुछ कमी है और कुछ चाहिए, यह सोचकर दुःख बढ़ता है। अपने काम और अपने कर्तव्यों का ठीक से निर्वहन ही चिंता का विषय हो, परिणाम नहीं। ऊर्जा का उपयोग काम में हो, परिणाम में नहीं। स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने में मन की शांति नहीं खोना चाहिए। परिस्थितियाँ, लोगों का व्यवहार, हम नहीं चुन सकते, पर कामनाओं पर नियंत्रण रख सकते हैं। हम तनाव या समस्या की उत्पत्ति का कारण जानें। उचित निवारण का प्रयास करें। दीर्घकालीन तनाव शरीर और मन के लिए घातक है। जो बदला नहीं जा सकता, उसको स्वीकार करें, यही उपाय है।

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