History, asked by anchalanchal0253, 2 months ago

सोलवीं शताब्दी में महिलाओं की स्थिति का वर्णन कीजिए आंसर​

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Answered by cuteprincess200012
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भारत में महिलाओं की स्थिति ने पिछली कुछ सदियों में कई बड़े बदलावों का सामना किया है।[1][2] प्राचीन काल[3] में पुरुषों के साथ बराबरी की स्थिति से लेकर मध्ययुगीन काल[4] के निम्न स्तरीय जीवन और साथ ही कई सुधारकों द्वारा समान अधिकारों को बढ़ावा दिए जाने तक, भारत में महिलाओं का इतिहास काफी गतिशील रहा है। आधुनिक भारत में महिलाएं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोक सभा अध्यक्ष, प्रतिपक्ष की नेता आदि जैसे शीर्ष पदों पर आसीन हुई हैं।

Answered by Anonymous
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हालांकि उत्तर वैदिक काल ईसा के 600 वर्ष पूर्व से लेकर ईसा के 300 वर्ष बाद तक का युग उत्तर वैदिक काल कहा जाता है। इस काल में महिलाओं की स्थिति में गिरवट आने लगी थी। वैदिक काल में पिण्डदान इत्यादि के लिए पुत्र जन्म की कामना रहती थी, लेकिन पुत्री के जन्म पर भी कोई विशेष आपत्ति नहीं होती थी। उत्तर वैदिक युग में पुत्री के जन्म को बुरा माना जाने लगा। इस युग में महिलाओं के धार्मिक अधिकारों को सीमित कर दिया गया। ‘‘इस काल में महिलों को यज्ञादि कर्मो, बाल विवाहों का प्रचलन तथा विधवा पुनर्विवाह पर रोक लगाना शुरू हो गया था।’’ अनुलोम-प्रतिलोम विवाहों के प्रतिबंध, स्त्री शिक्षा को सीमित करना, उपनयन संस्कार की औपचारिकता, कर्मकाण्डों की जटिलता की शुरूआत इसी काल में हुई। मनु और याज्ञवल्क्य जैसे स्मृतिकारों के द्वारा महिलाओं पर प्रतिबंधात्मक निर्देश तथा पतिव्रत धर्म का पालन करना, और पति को परमेश्वर का रूप माना जाना आदि के निर्देश दिए गए। इस युग में वैदिक युग का प्रभाव बना हुआ था। इस कारण से उनकी स्थिति विपरीत रूप से अधिक प्रभावित नहीं हो सकी। इससे केवल अशिक्षित और अल्प-शिक्षित तथा निम्न वर्ग की स्त्रियां ही प्रभावित हुई। अभिजात वर्ग की कुलीन महिलाएं अपनी शिक्षा और सम्पन्नता के बल पर पुरूषों के साथ समानता का व्यवहार पाती थी।

गौर तलब है कि 11वीं शताब्दी से 18वीं शताब्दी के काल को मध्यकाल कहा जा सकता है। इस काल को स्त्रियों की दृष्टिकोण में काला युग कहा जा सकता है। भारत में राजाओं की आपसी फूट का फायदा मुसलमानों ने उठाया और भारत देश पर अपना आधिपत्य कायम कर लिया। कुछ एक बादशाहों ने जोर-जबरदस्ती करके धर्म परिवर्तन करवाया तथा महिलाओं के साथ ज्यादतियां शुरू कर दी। जिसके परिणामस्वरूप ‘हिन्दुओं ने स्त्रियों पर अनेक प्रतिबंधात्मक निर्देशों और स्मृतिकारों की मनगढ़न्त बातों को धार्मिक स्वीकृति प्रदान की गई।’ यह भी कहा गया कि, स्त्री को कभी अकेली नहीं रहना चाहिए उसे हमेशा किसी न किसी के संरक्षण में ही रहना चाहिए। ‘‘बाल्यावस्था में पिता के, युवावस्था में पति के और वृद्धावस्था में पुत्र के संरक्षण में रहने का विधान भी इसी युग में दिया गया।’’ इस काल में नारी की दशा दयनीय हो गई। ‘‘पर्दा प्रथा ने नारी को घर की चारदीवारी की कैद में रहने के लिए मजबूर कर दिया, और बाल विवाहों का बाहुल्य हो गया तथा शिक्षा के द्वारा उसके लिए लगभग बंद कर दिये गयें। इसके साथ-साथ सती-प्रथा भी अपने शिखर पर पहुंच गई थी।’’ इस काल में महिलाओं को घर के कामकाज तक ही सीमित कर दिया गया। ‘पति परमेश्वर’ ‘पतिव्रत धर्म’ और पति के आदेशों पर महिलाओं को चलने की नैतिकता का कड़ाई से पालन इसी काल में हुआ। वस्तुतः मध्यकाल में स्त्रियों की स्वतंत्रता सब प्रकार से छीन ली गई और उन्हें जन्म से मृत्यु तक पुरूषों के अधीन कर दिया गया।

यदि इसे भारतीय नारी का दुर्भाग्य कहें या कुछ और कि उसे एक तरफ देवी बनाकर पूजा जाता है, तो दूसरी ओर सेविका बनाकर शोषण किया जाता है। एक युग था, जब नारी को पत्थर की मूर्तियों के भेंट चढ़ाया जाता था और अंत में वेश्यालयों में बेच दिया जाता था। आज भी दक्षिण भारत में कुंआरी कन्याओं का विवाह पूर्व मंदिरों में किया जाता है तथा उनका पण्डों द्वारा शोषण होता है। यह सभ्य समाज में पुरूष प्रधान व्यवस्था के कारण है। पुरूष अपने स्वार्थो की पूर्ति के लिए नारी का उपयोग एक वस्तु की तरह करता आया है। अतिथि को देवता समझकर भोजन और मदिरा की तरह रात को कुंआरी कन्या का सौंपना क्या था। इन सब के पीछे पुरूष की कामुक भावना और चतुराई काम करती है। पुरूष ने स्त्री के खून में यह भावना, संस्कार की तरह कूट-कूटकर भर दी है कि वह सिर्फ और सिर्फ शरीर है। शरीर के सिवा पुरूष किसी और पहचान से इंकार करता है। वही पन्त कहते हैं कि, ‘‘योनि मात्र रह गई मानवी।’’ और ‘‘कंकाल’ उपन्यास में प्रसाद ने स्वीकार किया है कि, ‘‘पुरूष नारी को उतनी ही शिक्षा देता है, जितनी उसके स्वार्थ में बाधक न हो।’’ तभी तो कन्याओं को जन्म लेते ही मार दिया जाता था। अब विज्ञान भी ‘‘औरत को मारने के तथा उसे जड़ से मिटाने के नित नए तरीके ईजाद करता जा रहा है। यदि भू्रण को ही मार दिया जाए तो शिशु को मारने की नौवत नहीं आएगी।

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