सुने विराट के सम्मुख _________ दाग से !' - पंक्तियों का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
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सुने विराट के सम्मुख _________ दाग से ! - पंक्तियों का भावार्थ....
ये पंक्तियाँ सचिदानन्द हीरनंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ जी द्वारा रचित कविता मैने देखा - एक बूंद कविता से ली गयी हैं।
इन पंक्तियों सहित पूरी कविता इस प्रकार है....
मैं ने देखा
एक बूंद सहसा
उछली सागर के झाग से--
रंगी गई क्षण-भर
ढलते सूरज की आग से।
-- मुझ को दीख गया :
सूने विराट के सम्मुख
हर आलोक-छुआ अपनापन
है उन्मोचन
नश्वरता के दाग से।
प्रश्न में दी गई पंक्तियों सहित पूरी कविता का भावार्थ इस प्रकार हैं...
भावार्थ — इस कविता में अज्ञेय जी ने समुद्र से अलग होती हुई एक बूंद की क्षणभंगुरता का वर्णन किया है। कवि का कहने का तात्पर्य यह है कि क्षणभंगुरता बूंद की है, समुद्र की नही। बूंद समुद्र से अलग होकर क्षण भर के लिए ढलते सूरज की आग से रंग जाती है, फिर उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। क्षणभंगुरता का यह दृश्य एक दार्शनिकता का एहसास भी दे जाता है।
विराट के सामने बूंद का समुद्र से अलग दिखना नश्वरता के दाग से और नष्ट होने के बोध से मुक्ति का एहसास है।
कवि ने जीवन में क्षण के महत्व को क्षणभंगुरता के माध्यम से प्रतिस्थापित किया है।